नई दिल्ली : पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा अपने दो पदाधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई पार्टी के शीर्ष नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत के उन बयानों की श्रृंखला के अनुरूप है, जिसमें तीखी और आक्रामक धार्मिक बयानबाजी से उन्होंने अपने संगठनों की दूरी बनाने की कोशिश की थी. हालांकि, यह बात दीगर है कि भाजपा की इस कार्रवाई से उसके समर्थकों के एक बड़े वर्ग की नाराजगी जरूर सतह पर आ गई.
नुपूर शर्मा के निलंबन और पार्टी की दिल्ली इकाई के मीडिया प्रमुख नवीन कुमार जिंदल के निष्कासन पर सोशल मीडिया पर भाजपा के भरोसेमंद 'चीयरलीडर्स' की नाराजगी भरी प्रतिक्रिया सामने आई है. नुपूर शर्मा के लिए यह नाराजगी कुछ ज्यादा दिखी. यह दर्शाता है कि भाजपा के समर्थकों की सेना को निर्देशित करने वाली भावनाओं और उसके नेतृत्व के फैसले के बीच एक एक तारतम्य की कमी है, जो उसने घरेलू प्रदर्शनों और खाड़ी देशों की नाराजगी भरी प्रतिक्रियाओं के नकारात्मक परिणामों को लगाम कसने के लिए लिया.
पार्टी में नीचे से लेकर ऊपर तक एक भावना यह भी है कि शर्मा को अरब के देशों के दबाव में यह सजा दी गई है. भारत में मुस्लिम संगठन शर्मा के बयानों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. हालांकि, पार्टी के एक नेता ने दावा किया कि सोशल मीडिया पर अभी जो ‘‘गर्माहट’’ दिख रही है वह क्षणिक है और सत्ताधारी पार्टी ने सुशासन के जिस एजेंडे को स्थापित किया है और जिससे उसे अपना जनाधार बढ़ाने में मदद मिली, वह उसके बारे में निरंतर नकारात्मक माहौल खड़ा करने की अनुमति नहीं दे सकती.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 20 मई को जयपुर में पार्टी पदाधिकारियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए भाजपा सदस्यों से कहा था कि वे विकास और राष्ट्रीय हित से जुड़े मुद्दों पर अडिग रहें और शार्टकट रास्ता अख्तियार करने से बचें. उन्होंने पार्टी नेताओं को चेताया भी था कि वह उन विरोधी दलों के ‘‘जाल’’ में ना फंसे, जो मुख्य मुद्दों से देश का ध्यान भटकाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं.
हालांकि मोदी ने सीधे तौर पर किसी का उल्लेख नहीं किया था लेकिन उनका बयान ऐसे समय में आया था जब वाराणसी स्थित ज्ञानव्यापी मस्जिद में अदालत के आदेश पर एक सर्वे के दौरान शिवलिंग होने की कथित जानकारी सामने आई थी.
आररएसएस ने कुछ अतिवादी तत्वों के उन बयानों से पिछले दिनों किनारा कर लिया था, जिनमें से कुछ ने विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों के सर्वे की मांग उठाई थी, जिनका संबंध मुस्लिम शासकों से रहा है. इसके पीछे ऐसे तत्वों का तर्क है कि हिन्दू मंदिरों को तोड़कर वह बनाए गए हैं.
ऐसे लोगों को संदेश देते हुए भागवत ने पिछले दिनों कहा था कि ज्ञानवापी विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं और इस पर अदालत का फैसला सर्वमान्य होना चाहिए. उन्होंने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने और रोजाना एक नया विवाद खड़ा करने की जरूरत नहीं है.
हरिद्वार में अप्रैल माह में हुए आरएसएस के चिंतन शिविर में भी यह विचार सामने आया था कि वैचारिक मुद्दों को आगे बढ़ाने के क्रम में समाज में किसी प्रकार की कटुता या संघर्ष को नजरअंदाज किया जाना चाहिए. भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी हाल ही में कहा था कि विवादास्पद धार्मिक मुद्दों पर फैसला ‘‘अदालतों और संविधान’’ को करना है ओर पार्टी उस फैसले का अक्षरश: पालन करेगी.
काशी और मथुरा मंदिरों के मुद्दे के भाजपा के एजेंडे में होने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में नड्डा ने यह बात कही थी. उन्होंने कहा था कि पार्टी ने हमेशा सांस्कृतिक विकास की बात की है और ऐसे मुद्दों पर संविधान और अदालतों के अनुसार फैसला किया जाता है. उन्होंने कहा, ‘‘अदालत और संविधान इस पर फैसला करेंगे तथा भाजपा इसका अक्षरश: पालन करेगी.’’ उन्होंने कहा कि भाजपा ने पालमपुर में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान राम जन्मभूमि मुद्दे पर एक प्रस्ताव पारित किया था. हालांकि शर्मा और जिंदल पर हुई कार्रवाई ने पार्टी के अपने ही कई सदस्यों को आश्चर्य में डाल दिया.