वाराणसी : 'हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा'. मशहूर शायर बशीर भद्र के लिखे ये अलफाज शहर के अमन कबीर पर सटीक बैठते हैं. 13 साल की उम्र से उनके दिल में समाजसेव का जज्बा उमड़ा तो कारवां बनता चला गया. लोगों से एक रुपये लेकर अमन कई लोगों के जीवन को खुशियों से रोशन कर चुके हैं. वह लगातार समाजसेवा में तत्पर हैं. कोरोना काल में भी खुद की जान की परवाह न कर वह लोगों की जिंदगी को आसान बनाने में लगे रहे. 50 शवों का अंतिम संस्कार भी खुद ही किया.
घर में डांट के बावजूद नहीं बदला फैसला :जिले के कोनिया गांव के रहने वाले अमन कबीर 13 साल की उम्र से समाजसेवा करते चले आ रहे हैं. घर से डांट-फटकार सहने के बावजूद उन्होंने अपना रास्ता नहीं बदला. सड़क किनारे जख्मी मिले लोगों की मदद करना, किसी की मौत होने पर उसका अंतिम संस्कर करना, बेटियों की शादी में भी सहयोग करना उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है. बिना किसी एनजीओ, बिना किसी संस्था के वह बनारस में एक बाइक एंबुलेंस और दो बड़ी एंबुलेंस संचालित करते हैं. यह सब लोगों की मदद से होता है. अमन का कहना है कि उनके प्रयास से कई लोगों की जिंदगी बदल चुकी है. वह इसके लिए लोगों से केवल एक रुपये की मदद मांगते हैं.
इस घटना के बाद आया समाजसेवा का विचार :अमन कबीर को बड़े नेताओं से लेकर सीएम भी जानते हैं. वह पूरे सूबे में चर्चित हैं. अमन ने बताया कि 23 सितंबर 2007 को कचहरी ब्लास्ट के बाद उन्होंने समाजसेवा का बीड़ा उठाया. ब्लास्ट में घायलों को देखकर उनका मन काफी विचलित हुआ था. इस दौरान उन्होंने समाज के लिए कुछ कर दिखाने की ठान ली. इसके बाद उनके समाजसेवा के सफर की शुरुआत हुई. कोरान काल में अमन ने अकेले 50 से ज्यादा लोगों के शवों का अंतिम संस्कार तक किया. ऐसे शवों को उनके परिजनों ने भी छूने से इनकार कर दिया था. ईटीवी भारत से बातचीत में अमन ने बताया कि उन्होंने बनारस में मुहिम की शुरुआत की. लोग मदद के लिए आगे आते गए. पैसा कहां से आ रहा था, कैसे आ रहा था, इसका हिसाब भी रख पाना संभव नहीं था. लोगों ने उन पर कई आरोप लगाने शुरू कर दिए. इसके बाद उन्होंने लोगों से प्रति व्यक्ति केवल एक रुपये की मदद करने की गुजारिश करनी शुरू कर दी.
एक मैसेज पर लोग करने लगते हैं दान :अमन बताते हैं कि जब मैं अपने सोशल मीडिया अकाउंट, वाट्सएप ग्रुप और अन्य जगहों पर किसी की मदद के लिए कोई संदेश प्रेषित करता हूं तो लोग खुद ब खुद मदद के लिए आगे आने लगते हैं. हाल ही में रवि शंकर मिश्र नाम के एक व्यक्ति का दुर्घटना में पैर टूट गया था. उनके पास इलाज के पैसे नहीं थे. लोगों से गुजारिश के बाद लगभग 12000 रुपये जुट गए. इससे जरूरतमंद की मदद की गई. एक नेत्रहीन बच्ची को डेंगू होने के कारण उसके लीवर में इन्फेक्शन हो गया था. लोगों की मदद से 15000 जुटाए. इसके बाद बच्ची के परिवार को रुपये दिए गए. बाद में बच्ची को सुरक्षित स्थान पर रखने का भी इंतजाम करवाया.