नई दिल्ली : चीन ने गुपचुप तरीके से 24 दिसंबर को म्यांमार को एक युद्धपोत (मिंग क्लास सबमरीन) गिफ्ट (China gifts a submarine to Myanmar)किया है. 24 दिसंबर को म्यांमार नेवी स्थापना दिवस मनाती है. इस खबर के बाद दिल्ली में रक्षा और विदेश रणनीतिकारों के कान खड़े हो गए हैं. दरअसल, म्यांमार को लेकर भारत और चीन दोनों ही देश अपनी-अपनी बिसात बिछाने में लगे हुए हैं. इसी कड़ी में भारत ने म्यांमार को वैक्सीन की खेप भी दी है.
आपको बता दें कि एक साल पहले भारत ने इसी दिन यानी 24 दिसंबर 2020 को रूस निर्मित किलो क्लास सबमरीन म्यांमार को गिफ्ट किया था. भारत का यह कदम म्यांमार को चीनी सबमरीन खरीदने से रोकने को लेकर उठाया गया था.
इसका परिणाम ये हुआ कि म्यांमार के पास अब दोनों सबमरीन हैं. एक भारत का और दूसरा चीन का. जाहिर है, म्यांमार ने दोनों ही सबमरीन काफी कम रेट में प्राप्त कर लिए हैं. हालांकि, रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों ही सबमरीन की लाइफ बहुत अधिक नहीं है, क्योंकि उनका नवीनीकरण (रिफर्बिस्ड) किया गया है.
भारत ने जिस सबमरीन को गिफ्ट किया था, वह आईएनएस सिंधुवीर के नाम से भारतीय नौसेना में अपनी सेवा दे रहा था. म्यांमार ने इसे यूएमएस मिन्ये थेनखाटू नाम दिया है. बर्मा के एक पुराने योद्धा के नाम पर इसका नामकरण किया गया है.
चीन के सबमरीन का नाम म्यांमार ने यूएमएस मिन्ये कैयू हटीन रखा है. इसका नाम म्यांमार के एक राजा के नाम पर रखा गया है. 1673-1698 तक उन्होंने बर्मा का शासन किया था. इसकी कमीशनिंग शुक्रवार को म्यांमार नेवल डॉकयार्ड, सिनमालिक, थिलावा डॉकयार्ड, यांगून नेवल बेस में आयोजित किया गया था. इसमें तातमाडॉ के प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग हलिंग ने पोत के कमांडर को बैज प्रजेंट किया था.
सबमरीन ट्रांसफर को आप इस नजरिए से भी देख सकते हैं. चीन अपने पुराने नौसैनिक प्लेटफॉर्मों को चरणबद्ध तरीके से हटा रहा है और उसकी जगह आधुनिक और अधिक शक्तिशाली जहाजों की तैनाती कर रहा है.
चिंता का विषय एक और है. भारत के तीन पड़ोसी देशों - पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार- के पास चीन निर्मित सबमरीन हैं. यह उस सिद्धांत को और अधिक बल दे रहा है कि चीन भारत को घेरने की तैयारी कर रहा है. भारत के पड़ोसी देशों पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रहा है. खबर है कि थाइलैंड भी कुछ दिनों में चीन निर्मित सबमरीन हासिल करेगा.
भारत के लिए चिंता ये है कि चीन न सिर्फ सबमरीन को ट्रांसफर करता है, बल्कि इसके साथ-साथ यह भी शर्त लगाता है कि उनके कर्मचारी और तकनीकी विशेषज्ञ भी कुछ दिनों तक उन देशों में ठहरते हैं. उन्हें ट्रेनिंग के नाम पर भेजा जाता है. इसका अर्थ है कि चीनी मिलिट्री उन देशों में मौजूद रहते हैं. म्यांमार इसका ताजा उदाहरण है. म्यांमार को सबसे अधिक सैन्य हथियार और सैन्य साजो सामान चीन ही निर्यात करता है.
म्यांमार का वर्तमान सत्ता (तातमाडॉ) बीजिंग के प्रति सॉफ्ट नजरिया रखता है. एक फरवरी 2021 के बाद (तख्तापलट की घटना के बाद) दोनों देशों के बीच नजदीकी संबंध पहले के मुकाबले बढ़े हैं. म्यांमार के जनरल हलिंग ने प्रजातांत्रिक तरीके से चल रही एक दशक पुरानी सरकार को हटा दिया था.
तख्तापलट से पहले नवंबर 2020 में हुए आम चुनाव में आंग सान सूकी की पार्टी नेशनल डेमोक्रेटिक लीग को 476 सीटों में से 396 सीटों पर भारी जीत हासिल हुई थी. सेना द्वारा समर्थित यूनियन सॉलिडरिटी और डेवलपमेंट पार्टी को मात्र 33 सीटें मिली थीं.
तब से लकर आज तक 1375 लोग मारे गए हैं. 8000 से अधिक लोग जेल में बंद हैं. प्रजातांत्रिक समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है. आप कह सकते हैं कि देश में सिविल वॉर जैसी स्थिति है. छोटे-छोटे कई जातीय शस्त्र समूहों ने जुंटा (सेना) के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है. इनमें काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA), करेन नेशनल यूनियन (KNU), तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA), शान स्टेट आर्मी-नॉर्थ, म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी और अराकान समेत कई संगठन शामिल हैं.
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