देहरादून: मोहनदास करमचंद गांधी एक ऐसा नाम, जिसने मानवीय मूल्यों को सबसे ऊपर रखा. दुनिया में आज जब भी कही मानवीय मूल्यों, अंहिसा, शांति और मानवता की बात आती है तो सबसे पहले मोहनदास करमचंद गांधी का नाम आता है, वो ही महात्मा गांधी जिन्होंने दुनिया को मानवता का एक नया नजरिया दिया था. आज 2 अक्टूबर को पूरा देश उन्हीं की जयंती मना रहा है. महात्मा गांधी की जयंती पर आज हम आपको उनके उत्तराखंड के कनेक्शन के बारे में बताने जा रहे हैं. उत्तराखंड से महात्मा गांधी का काफी गहरा नाता रहा है.
कौसानी की अनाशक्ति आश्रम. महात्मा गांधी का उत्तराखंड से गहरा लगाव था. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उत्तराखंड में 1915 से 1946 के बीच कुल छह यात्राएं की थी. महात्मा गांधी की साल 1929 की कुमाऊं यात्रा बेहद खास थी. उस यात्रा से जुड़े कई किस्से हैं, जिनके बारे में ईटीवी भारत आपको विस्तार से बताएगा.
पढ़ें- कुमाऊं में इस जगह से था महात्मा गांधी को प्रेम, अब बदलेगी तस्वीर कौसानी को बताया था भारत का स्विट्जरलैंड: अपनी कुमाऊं यात्रा के दौरान महात्मा गांधी करीब 14 दिनों तक बागेश्वर जिले के कासौनी में रुके थे. महात्मा गांधी ने ही कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड कहा था. बताया जाता है कि साल 1929 में जून के दूसरे पखवाड़े में महात्मा गांधी कौसानी में दो दिन रुकने के लिए आए थे, लेकिन महात्मा गांधी को यहां की खूबसूरती और वातावरण इतना भाया कि वो 14 दिनों तक फिर रुके रहे.
कौसानी के अनाशक्ति आश्रम में गांधी जी की फोटो. हरिजन कोष में दिए थे 24 हजार रुपए दान: बताया जाता है कि कौसानी में रहकर ही महात्मा गांधी ने आंदोलन की धार को तेज किया था और अपनी इसी यात्रा के दौरान छुआछूत जैसी कई कुरीतियों पर प्रहार किया था और इसी कारण आंदोलन के लिए दान में मिले 24 हजार रुपए उन्होंने हरिजन कोष में दिए थे. कौसानी में महात्मा गांधी ने अनाशक्ति योग पुस्तक की प्रस्तावन लिखी थी. कौसानी का अनाशक्ति आश्रम आज भी आजादी की प्रेरणा देता है.
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कुली बेगार आंदोलन से प्रभावित हुए थे महात्मा गांधी: दरअसल, साल 1921 में ब्रिटिश काल में बागेश्वर में अहिंसक कुली बेगार आंदोलन हुआ था. आम जनता के इस आंदोलन का नेतृत्व बदरी दत्त पांडे ने किया था और ये आंदोलन सफल रहा था, जिसके लिए बदरी दत्त पांडे को कुमाऊं केसरी की उपाधि दी गई थी.
उत्तराखंड के गांधी जी का नाता. बता दें कि आम आदमी से कुली के काम बिना पारिश्रमिक दिए कराने को कुली बेगार कहा जाता था. इसी आंदोलन से प्रभावित होकर महात्मा गांधी बागेश्वर आए थे. बागेश्वर में महात्मा गांधी ने स्वराज भवन की नींव रखी थी. यहां वो एक ही दिन रुके और फिर आगे कौसानी चल गए थे.
26 स्थानों पर दिया था भाषण: अपनी पहली कुमाऊं यात्रा के दौरान महात्मा गांधी ने स्वेदशी, स्वावलंबन, आत्मशुद्धि, खादी प्रचार और समाज में व्याप्त तमाम कुरीतियों को लेकर करीब 26 स्थानों पर भाषण दिया था.