नई दिल्ली: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डीके शर्मा ने ईटीवी भारत से कहा कि डॉक्टरों को न तो भगवान समझें और न ही खलनायक. हम स्वास्थ्य पेशेवर हैं और हम हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करते हैं. किसी भी स्थिति के लिए डॉक्टरों को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि हम हमेशा मानव जीवन को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया दोतरफा होनी चाहिए-डॉक्टरों की तरफ से और समुदाय की तरफ से.
डॉ. शर्मा ने कहा कि डॉक्टरों की ओर से मरीजों के साथ उचित संवाद के साथ नैतिक चिकित्सा पद्धति अपनानी चाहिए, वहीं समुदाय को भी डॉक्टरों को भगवान या खलनायक मानना बंद करना चाहिए. डॉक्टरों को हिंसा से बचाने के लिए मजबूत कानून लागू करने पर जोर देते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि डॉक्टरों-समुदाय के बीच उचित संवाद होना चाहिए. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 75 प्रतिशत डॉक्टरों को अपने करियर में कभी न कभी हिंसा का सामना करना पड़ता है.
एम्स के फोरेंसिक विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने कहा, "हर दिन डॉक्टर दिवस है. लोगों को डॉक्टरों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि हम हमेशा लोगों की जान बचाने की कोशिश करते हैं. वास्तव में, जब डॉक्टरों पर हमला होता है तो सरकार को भी कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए." इसी बात को दोहराते हुए जयपुर के सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज (एसएमएस मेडिकल कॉलेज) के सहायक प्रोफेसर डॉ. दिनेश गोरा ने कहा कि ज्यादातर मामलों में मरीजों के परिचारकों द्वारा डॉक्टरों पर हमला किया जा रहा है.
डॉ गोरा ने कहा, "लोगों को डॉक्टरों के मूल्य को समझना चाहिए. हम भी इंसान हैं। कई बार हम लगातार 12 घंटे से अधिक काम करते हैं. इसलिए, जब हम पर लोगों द्वारा हमला किया जाता है, तो यह हमें हतोत्साहित करता है." भारत सरकार ने डॉक्टरों पर हमले को रोकने के लिए एक मजबूत निवारक के रूप में महामारी रोग (संशोधन) अधिनियम, 2020 को अधिसूचित किया. 28 सितंबर, 2020 को अधिसूचित अधिनियम कहता है कि किसी भी स्थिति के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा का कोई भी कार्य संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध होगा.
इसमें आगे कहा गया है कि हिंसा के ऐसे कृत्यों को अंजाम देना या उकसाना या किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना तीन महीने से पांच साल की सजा और 50,000 रुपये से 2,00,000 रुपये के जुर्माने के साथ दंडनीय होगा. अधिनियम में आगे कहा गया है कि गंभीर चोट पहुंचाने के मामले में छह महीने से सात साल तक की कैद और 1,00,000 रुपये से 5,00,000 रुपये तक का जुर्माना होगा.
वरिष्ठ प्रसिद्ध चिकित्सक और एशियन सोसाइटी फॉर इमरजेंसी मेडिसिन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. तमोरिश कोले ने कहा कि मेरा मानना है कि सरकार के पास कानून हैं, लेकिन कार्यान्वयन एक चुनौती है. कोविड के समय में, समाज ने डॉक्टरों सहित स्वास्थ्य पेशेवरों के मूल्य को समझा. उसे बरकरार रखा जाना चाहिए. अकेले कानून से समस्या का समाधान नहीं हो सकता.
एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि लोगों को डॉक्टरों की कीमत का एहसास होना चाहिए. डॉ. गुलेरिया, जो वर्तमान में मेदांता में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनल मेडिसिन एंड रेस्पिरेटरी एंड स्लीप मेडिसिन के अध्यक्ष और चिकित्सा शिक्षा निदेशक के रूप में कार्यरत हैं, ने कहा कि विशेष रूप से महामारी के दौरान लोगों ने देखा है कि डॉक्टरों ने मानव जीवन को बचाने के लिए कैसे काम किया. डॉक्टरों को लोगों से उचित सम्मान और मूल्य मिलता रहना चाहिए जो स्वास्थ्य पेशेवरों की भावना को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है.
हालाँकि, चूंकि स्वास्थ्य एक राज्य का विषय है, इसलिए भारत सरकार डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को रोकने और ड्यूटी पर डॉक्टरों के बीच सुरक्षा की प्रभावी भावना पैदा करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को सलाह जारी करती रहती है.
डॉ. गोरा ने कहा, "केंद्र सरकार ने अधिनियम बनाया है, लेकिन राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा इसका उचित कार्यान्वयन बहुत जरूरी है." डॉक्टर दिवस के अवसर पर, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने समुदाय और उसके लोगों की सेवा के लिए पूरे भारत में 800 गांवों को गोद लेकर आओ गांव चले मिशन का आयोजन किया है. आईएमए के अध्यक्ष डॉ. शरद कुमार अग्रवाल ने कहा, "हमने आओ गांव चले प्रोजेक्ट के साथ 25 जून से डॉक्टर्स डे मनाने की शुरुआत की. इस मिशन के तहत हमने विभिन्न राज्यों के 800 गांवों को गोद लिया है, जहां हमारे सदस्य जाएंगे और ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करेंगे."