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अखिलेश और राजभर आए साथ, ओमप्रकाश बोले- अबकी बार भाजपा साफ

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने मुलाकात की है. दोनों दलों के बीच यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर गठबंधन को लेकर बातचीत हुई है, इसकी पुष्टि ओमप्रकाश राजभर ने ट्वीट के जरिए की है.

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Published : Oct 20, 2021, 5:14 PM IST

Updated : Oct 20, 2021, 6:22 PM IST

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से बुधवार को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के अध्यक्ष व संकल्प भागीदारी मोर्चा के संयोजक ओमप्रकाश राजभर ने मुलाकात की है. सूत्रों के अनुसार दोनों दलों के बीच यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर गठबंधन पर शुरुआती बातचीत हुई है. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में ओमप्रकाश राजभर के संकल्प भागीदारी मोर्चे के साथ जुड़े अन्य दलों को जोड़ने और गठबंधन को लेकर बातचीत हुई है. हालांकि औपचारिक रूप से अभी संकल्प भागीदारी मोर्चे के कौन कौन से दल सपा के साथ गठबंधन करेंगे, इस पर सहमति नहीं बन पाई है. अखिलेश यादव से मुलाकात के दौरान ओमप्रकाश राजभर के साथ उनके बेटे अरविंद राजभर भी उपस्थित रहे.

वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो राजभर को कमल भाने लगा है, क्योंकि ओवैसी की यारी से उन्हें यहां कुछ खास हासिल होता नहीं दिखा. सो उन्होंने भागीदारी संकल्प लेने से पहले ही अपने यात्रा का मार्ग बदलने की कोशिश में मजबूत दांव खेल दिया है. लेकिन ओवैसी भी राजभर की संभावित सियासी बेवफाई का रोना रोने के बजाय अब राम नगरी में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद से यारी कर ली है. इतना ही नहीं उन्होंने तो सूबे की सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट होकर भाजपा का सामना करने की सलाह भी दी है.

अखिलेश और राजभर में गठबंधन तय

नफा-नुकसान देख बना रहे आगे की रणनीति

दरअसल, एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी सूबे में सभी छोटी पार्टियों को एकजुट कर एक मोर्चा बनाना चाहते हैं, जिसमें ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल यादव की सक्रियता देखते बन रही थी, पर अब राजभर भाजपा के साथ ही सपा पर डोरे डाल रहे हैं और शिवपाल कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम के संपर्क में हैं. ऐसे में इस मोर्चा की नींव पड़ने से पहले ही तथाकथित कर्णधार अपने नफा-नुकसान को देखते हुए आगे की रणनीतियां बना रहे हैं. यानी कुल मिलाकर कहें तो इस संभावित मोर्चे के भविष्य पर अमावस्या का ग्रहण दोष दिख रहा है. इधर, इन बदले सूरत-ए-हाल के बीच अकेले पड़े ओवैसी को अब यूपी में चंद्रशेखर का साथ मिल गया है.

ओवैसी सूबे में गैर भाजपा, गैर कांग्रेस दलों के साथ गठबंधन कर जमीनी स्तर पर सियासी समीकरण बदलने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल यादव का रुख अस्पष्ट होने के कारण फिलहाल मोर्चा का अस्तित्व अनसुलझे पथ पर है. वहीं, अबकी यूपी विधानसभा चुनाव भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस और दूसरे छोटे दलों के लिए भी कई मायनों में अहम है. चुनाव से पहले की अगर बात करें तो भाजपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस अलग-अलग लड़ती नजर आ रही हैं.

अखिलेश से मुलाकात कई मायनों में महत्वपूर्ण

बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव में राजभर तमाम दलों के साथ गठबंधन को लेकर अलग-अलग मेल मुलाकात कर रहे हैं. राजभर की अखिलेश यादव के साथ मुलाकात कई मायनों में महत्वपूर्ण है. क्योंकि पिछले दिनों ओमप्रकाश राजभर ने अपनी शर्तों के आधार पर भाजपा से गठबंधन करने की बात कही थी. लेकिन अखिलेश यादव से मुलाकात कर वह भाजपा को दबाव में लेने की कोशिश कर रहे हैं.

अखिलेश से मुलाकात के बाद ओमप्रकाश राजभर ने ट्वीट किया है 'अबकी बार, भाजपा साफ़! समाजवादी पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी मिलकर आए साथ. दलितों, पिछड़ों अल्पसंख्यकों के साथ सभी वर्गों को धोखा देने वाली भाजपा सरकार के दिन हैं बचे चार. पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा के सुप्रीमो अखिलेश यादव से शिष्टाचार मुलाकात की है.

ओवैसी और चंद्रशेखर में गठबंधन!

उल्लेखनीय है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने पिछले महीने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और शिवपाल सिंह यादव के साथ ही मुलाकात की थी और उन्हें अपने संकल्प भागीदारी मोर्चे के साथ जोड़ने को लेकर बातचीत की थी. राजभर के साथ एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने भी मुलाकात की थी. वहीं, अभी कुछ दिनों पहले ओमप्रकाश राजभर ने भाजपा के साथ गठबंधन में जाने को लेकर अपनी शर्ते रखी थी. हालांकि बीजेपी की तरफ से कोई बयान सामने नहीं आया है. लेकिन अखिलेश यादव के साथ मुलाकात काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है.

ओवैसी छोटी पार्टियों को एकजुट करने में लगे.


समाजवादी पार्टी ने ओमप्रकाश राजभर के साथ हुई मुलाकात के बाद बयान जारी कर कहा है कि सपा और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी आए साथ. जारी बयान में कहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव एक ऐसी समाजवादी व्यवस्था की स्थापना करना चाहते हैं, जिसमें समाजवादी विचारों का व्यावहारिक स्वरूप हो. जिससे खुशहाल, समावेशी और भेद-भावविहीन समाज बन सके. इसी संकल्प को सिद्ध करने के लिए समाजवादी पार्टी सभी को साथ लेकर निरंतर आगे बढ़ रही है.अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी सरकार ने गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग समेत वंचितों, शोषितों, किसानों, नौजवानों, महिलाओं, व्यापारियों के लिए अनगिनत कार्य किये. इसी कड़ी में कमजोरों के हक की आवाज को बुलंद करने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी के साथ कदम से कदम मिलाकर यूपी को विकास पथ पर ले जाने के लिए तैयार है. ये भाजपा के दमनकारी शासन के अंत की शुरुआत है.

ओवैसी और चंद्रशेखर ने दिए ये बड़े बयान

एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि गैर भाजपा, गैर कांग्रेस दल के साथ गठबंधन करने में उन्हें परहेज नहीं है. इसका सीधा अर्थ यह है कि उनका इशारा समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी की ओर है तो वहीं, दूसरी ओर भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर ने कहा कि अगर मायावती 2022 में उनका समर्थन करती हैं तो 2024 में वो उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में मदद करेंगे.

चंद्रशेखर ने मायावाती से मांगा था समर्थन.

भाजपा के पराजय को ओवैसी ने दिया सियासी मंत्र

ओवैसी ने बताया कि वे शिवपाल यादव और ओम प्रकाश राजभर से जब मिले थे तो उन्होंने उनसे एक ही बात कही थी कि अगर देश व सूबे को समस्या मुक्त करना है तो फिर भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए सभी को एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरने की जरूरत है. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी साफ कहा था कि वे गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दल के साथ गठबंधन कर सकते हैं. क्योंकि लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद से ही सूबे के लोगों में योगी सरकार के प्रति जबर्दस्त गुस्सा है. अगर हम सब एक साथ मिलकर चुनाव लड़े तो भाजपा को न सिर्फ कड़ी टक्कर दिया जा सकता है, बल्कि हराया भी जा सकता है.

सूबे के सियासी जानकारों ने कहा...

सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी पार्टियों को लगता है कि अगर वे एकजुट होकर आते हैं तो फिर वे भाजपा की चुनौती बढ़ाने का काम करेंगे. इतना ही नहीं आवश्यकता पड़ने पर ये पार्टियां सपा और बसपा के साथ भी जा सकती है.

भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी जातियों को लुभाने को तरह-तरह के गठबंधन को जमीन पर उतारा था. लेकिन योगी आदित्यनाथ को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तो विपक्षी दलों ने राग अलापना शुरू किया कि भाजपा के लिए पिछड़ी जाति सिर्फ वोटबैंक हैं. अगर ऐसा न होता तो केशव प्रसाद मौर्या को भला क्यों नहीं मुख्यमंत्री बनाया गया.

इसी तरह के नारे 2019 के आम चुनाव में भी दिए गए, लेकिन नतीजों में भाजपा को कोई खास नुकसान नहीं हुआ या फिर कह सकते हैं कि बसपा और सपा एक साथ चुनावी मंच पर आकर भी सामाजिक समीकरणों को ईवीएम तक ले जाने में कामयाब नहीं हुए.

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Last Updated : Oct 20, 2021, 6:22 PM IST

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