रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले (CM Hemant Soren Office of Profit Case) में चुनाव आयोग की रिपोर्ट राजभवन पहुंचने के बाद झारखंड की राजनीति में भूचाल आ गया है. राजभवन और सीएम आवास में गतिविधियां तेज हो गईं हैं. राजभवन के बाहर पत्रकारों का जमावड़ा लग रहा है. वहीं सीएम आवास पर मंत्री विधायकों की आवाजाही के साथ-साथ आवास के बाहर राज्य के बड़े-बड़े पत्रकारों ने डेरा डाल दिया है. अंदर और बाहर दोनों जगहों पर संभावनाओं को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है.
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राज्य का भविष्य क्या होगा. राज्य को कोई नया सीएम मिलेगा या हेमंत ही बने रहेंगे. यह तो राज्यपाल के फैसले पर निर्भर करेगा. लेकिन अगर हेमंत को सीएम पद छोड़ना पड़ता है तब वैसी परिस्थिति में क्या होगा? कौन राज्य की बागडोर संभालेगा. इसमें कई नामों की चर्चा हो रही है. जिसमें हेमंत के पिता शिबू सोरेन, माता रूपी सोरेन और पत्नी कल्पना सोरेन (Hemant wife Kalpana Soren) के नाम की चर्चा है. सबसे अधिक चर्चा कल्पना सोरेन की ही है. लेकिन सवाल यह है कि कल्पना सोरेन का सीएम बनना क्या इतना आसान है. इसका जवाब राजनीतिक पंडित ना में दे रहे हैं. उनका कहना है कि कल्पना के सीएम बनने की राह में कई रोड़े हैं.
विधायक बनना: अगर कल्पना सोरेन सीएम बनती है, तो उन्हें 6 महीने के अंदर में विधानसभा का सदस्य बनना होगा. हेमंत सोरेन की अयोग्यता से जो सीट खाली हो सकती है, वह रिजर्व सीट है. कल्पना ओडिशा की मूल निवासी हैं, इसलिए उनके बहरहेट जैसी रिजर्व सीट से चुनाव लड़ने में कई पेंच फंस सकते हैं. बरहेट के अलावा किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ेंगे तो किसी विधायक को इस्तीफा देना पड़ेगा, जो मुश्किल लग रहा है. क्योंकि जेएमएम सुप्रीम शिबू सोरेन 20 अगस्त 2008 को जब दूसरी बार सीएम बने थे तब वो भी विधायक नहीं थे. उनके लिए जेएमएम के किसी विधायक ने सीट छोड़ने की पेशकश नहीं की. लिहाजा उन्हें रमेश सिंह मुंडा की हत्या के बाद खाली हुई सीट तमाड़ से चुनाव लड़ना पड़ा जहां से राजा पीटर ने उन्हें पटखनी दे दी और वो चुनाव हार गए और सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. इस तरह का एक और मौका आया 2009 में जब 30 दिसंबर को उन्होंने फिर से तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली. इस बार भी वो झारखंड विधानसभा के सदस्य नहीं थे. 30 दिसंबर 2009 से लेकर 30 मई 2010 तक जेएमएम के किसी विधायक ने उनके लिए सीट छोड़ने की पेशकश नहीं की.