कोलकाता: पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सीनियर नेता और पंचायती राज्य मंत्री सुब्रत मुखर्जी (Subrata Mukherjee) का गुरुवार को निधन हो गया. बता दें, मुखर्जी (75) लंबे समय से बीमार थे. जानकारी के मुताबिक सुब्रत मुखर्जी करीब 50 सालों से राज्य की राजनीति में सक्रिय थे.
1946 में दक्षिण 24 परगना जिले में जन्मे सुब्रत मुखर्जी पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. बंगाल की राजनीति में उनका जीवन पांच दशकों तक चला. उन्होंने साठ के दशक में छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था. 1967 में बंगबासी कॉलेज के छात्र नेता के रूप में मुखर्जी ने राजनीति में प्रवेश किया. बता दें, राज्य में जब पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी, उस दौरान मुखर्जी अपने संगठनात्मक और वक्तृत्व कौशल के माध्यम से तेजी से आगे बढ़े और दिवंगत केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सोमेन मित्रा के साथ पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शामिल हो गए.
दासमुंशी और मित्रा की मृत्यु क्रमशः 2017 और 2020 में हुई थी. मुखर्जी के संगठनात्मक कौशल पर सबसे पहले दासमुंशी ने ही ध्यान दिया था. इन दोनों की जोड़ी ने नक्सलियों और वामपंथियों के साथ राजनीतिक लड़ाई लड़ते हुए पश्चिम बंगाल में पार्टी की एक नई रुपरेखा तय की. वक्तृत्व और संगठनात्मक कौशल के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी उनकी प्रशंसा की थी. चुनावी राजनीति में मुखर्जी की पहली शुरुआत 1971 में उस समय हुई जब वह पश्चिम बंगाल विधानसभा में 25 साल की उम्र में बालीगंज सीट से सबसे कम उम्र के विधायक बने.
1972 में कांग्रेस के सत्ता में लौटने के बाद वह सिद्धार्थ शंकर रे कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री बने. उन्हें सूचना और सांस्कृतिक राज्य मंत्री बनाया गया था. 1975-77 के आपातकाल के दौरान प्रेस को दबाने के लिए उनकी अक्सर आलोचना की जाती थी. हालांकि वह 1977 में चुनाव हार गए, लेकिन यह पार्टी में उनके तेजी से विकास पर कोई असर नहीं पड़ा. 1982 के चुनावों में जोरबागन विधानसभा सीट से विधानसभा में वापस आ गए. वह अपने जीवन के अंतिम दिन तक बालीगंज विधानसभा सीट से विधानसभा सदस्य रहे.