सहारनपुर:फतवों की नगरी एवं विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम में छात्रों के अंग्रेजी पढ़ने पर लगी पाबंदी का मामला बढ़ता जा रहा है. संस्था में धार्मिक तालीम के साथ अंग्रेजी एवं आधुनिक विषयों की पढ़ाई नहीं करने के मामले में यूपी अल्पसंख्यक आयोग ने दारुल उलूम को न सिर्फ नोटिस जारी किया है बल्कि 21 जून तक जवाब मांगा है. इतना ही नहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी जिलाधिकारी सहारनपुर को पत्र भेजकर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. साथ ही राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने जिलाधिकारी के जरिए संस्था से जवाब भी तलब किया है. यूपी अल्पसंख्यक आयोग ने दारुल उलूम देवबंद से स्पष्टीकरण देने को कहा है, जिसके बाद दारुल उलूम प्रबंधन में हड़कंप है. हालांकि, जमीयत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी इस मामले में पहले ही सफाई दे चुके हैं.
बता दें कि दारुल उलूम देवबंद में मुस्लिम छात्रों को केवल इस्लाम धर्म की पढ़ाई कराई जाती है. यहां दुनिया भर के मुस्लिम देशों के छात्र धार्मिक तालीम लेने आते हैं. 14 जून को दारुल उलूम प्रबंधन ने मदरसे के छात्रों के लिए नोटिस जारी कर दारुल उलूम की पढ़ाई के साथ अंग्रेजी और दूसरे विषयों की पढ़ाई न करने का फरमान सुनाया था. दारुल उलूम देवबंद का यह फरमान मीडिया की सुर्खियां बना तो जमीयत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने मामले पर सफाई पेश की. फरमान में कहा गया कि दारूल उलूम के छात्र अंग्रेज़ी कतई नही पढ़ेंगे और अगर ऐसा करते पाए गए तो उनका निष्कासन कर दिया जाएगा.
मौलाना अरशद मदनी के मुताबिक दारुल उलूम में तालीम का निज़ाम बहुत सख्त है, जो छात्र मदरसे की पढ़ाई के साथ अंग्रेजी की ओर ध्यान देते हैं यानि ऐसे छात्र जो दो नाव की की सवारी करते हैं, वे न सिर्फ हमारे तालीमी निज़ाम को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि खुद के भविष्य को भी बिगाड़ रहे हैं.
मौलाना अरशद मदनी ने कहा था कि भारत भर में बहुत से गुरुकुल भी चलाए जा रहे हैं जहां पर उनको धार्मिक शिक्षा दी जाती है और वहां पर वही छात्र एडमिशन लेते हैं जिनको धर्म की जानकारी और धार्मिक शिक्षा चाहिए. बावजूद इसके मदरसे और उनके छात्रों को ही टारगेट क्यों बनाया जाता है. गुरुकुल की तरह मदरसे में जो छात्र एडमिशन लेते हैं वो वहां धार्मिक शिक्षा, अरबी शिक्षा और मौलवी आलिम मुफ़्ती बनने के लिए ही आते हैं.