नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि केंद्र सरकार 2011 की जनगणना के आधार पर प्रवासी मजदूरों के आंकड़ों पर भरोसा नहीं कर सकती है. क्योंकि यह 'जरूरतमंद लोगों के साथ अन्याय होगा जो वास्तव में पात्र हैं. यह भी देखा गया कि ऐसे प्रवासी हैं जो पंजीकृत हैं, लेकिन उनके पास राशन कार्ड नहीं है और सरकार को न केवल यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें खाना खिलाया जाए बल्कि उन्हें राशन कार्ड भी उपलब्ध कराया जाए. अदालत ने कहा कि आपको इस पर सोचना होगा और कुछ तय करना होगा, आप कुछ मानदंड तय करेंगे. यह देखा गया कि 2011 के बाद महामारी के कारण जनगणना नहीं करना लोगों को राशन से वंचित करने का कारण नहीं हो सकता है.
अदालत ने कहा कि 27 करोड़ प्रवासियों में सिर्फ, 15 करोड़ लोगों को राशन दिया जा रहा है. अन्य 12 करोड़ लोगो का क्या. उस पर हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते हैं. कुछ तो होना चाहिए. न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरथ की पीठ प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और दुखों से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी. अदालत ने सुझाव दिया कि खाद्य और आपूर्ति विभाग के पास राशन कार्ड उपलब्ध कराने के लिए लक्ष्य निर्धारित हो सकते हैं, जिसके लिए राज्यों के सहयोग की आवश्यकता होगी क्योंकि यह पूरी तरह से केंद्र द्वारा नहीं किया जा सकता है.
उच्चतम न्यायालय ने अधिकतम प्रवासी श्रमिकों को राशन सुनिश्चित करने का राज्य सरकारों को तौर-तरीके तैयार करने का निर्देश देते हुए गुरुवार को कहा- हमारे विकास करने के बावजूद लोग भूख से मर रहे हैं. न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह कहा. उल्लेखनीय है कि मामले में साल 2020 में मई महीने में शीर्ष न्यायालय ने प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं और दशा का संज्ञान लिया था.
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पीठ ने कहा, प्रत्येक राज्य में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को अवश्य ही इसका लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए कि वे कितनी संख्या में राशन कार्ड पंजीकृत करने जा रहे हैं. इस पर स्थानीय स्तर पर काम करना होगा. क्योंकि हर राज्य की अपनी खुद की अर्हता है. अवश्य ही एक निर्धारित अर्हता होनी चाहिए. न्यायमूर्ति नागरत्न ने मौखिक टिप्पणी में कहा, अंतिम लक्ष्य यह है कि भारत में कोई नागरिक भूख से नहीं मरे. दुर्भाग्य से यह (भुखमरी से होने वाली मौतें) हमारे विकास करने के बावजूद हो रही हैं.
न्यायाधीश ने कहा, लोग भूख से और भोजन के अभाव के चलते मर रहे हैं. उन्होंने कहा कि गांवों में, लोगों ने भूख से समझौता कर लिया है. शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह विषय पर कुछ आदेश जारी करेगा और दो हफ्ते बाद मामले की सुनवाई करेगा. अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप छोकर नाम के तीन नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने न्यायालय में याचिका दायर कर केंद्र और राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था कि प्रवासी श्रमिकों के लिए खाद्य सुरक्षा, नकद अंतरण और अन्य कल्याणकारी उपाय किए जाएं. याचिका में उन प्रवासी श्रमिकों का जिक्र किया गया है, जिन्होंने कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में कर्फ्यू और लॉकडाउन के दौरान संकट का सामना किया.
जे एमआर शाह ने कहा कि सभी राज्यों को प्रवासियों के लिए, आम आदमी, गरीबों और जरूरतमंदों के लिए काम करना होगा. ताकि उन्हें सांत्वना और विश्वास हो कि कोई मेरी और मेरे परिवार की देखभाल करने के लिए है. अदालत ने कहा कि कोई भी इस बात पर विवाद नहीं कर सकता कि वे राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कोर्ट ने कहा कि वह राज्यों के चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट और प्रगति की समीक्षा करेगा. अदालत ने कहा कि सबसे ज्यादा जरूरत एक धक्के की है. हम केवल धक्का दे सकते हैं लेकिन आखिरकार आपको कार चलाने की स्थिति में होना चाहिए.