शिमला :इस समय देशभर में झारखंड विधानसभा (Jharkhand Legislative Assembly) एक अलग ही कारण से चर्चा में है. झारखंड में विधानसभा के भीतर मुस्लिम प्रतिनिधियों (Muslim representatives) को नमाज़ के लिए एक कक्ष सुरक्षित करने के बाद नया विवाद पैदा हो गया है. झारखंड के बाद बिहार (BIHAR) में भी ऐसी मांग उठ रही है. वहीं, देश में सबसे पहले ई-विधान प्रणाली लागू करने वाले हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का इतिहास उठाकर देखें तो यहां कभी भी कोई मुस्लिम प्रतिनिधि सदन तक नहीं पहुंचा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद से अब तक एक भी मुस्लिम विधायक (Muslim MLA) चुनकर नहीं आया.
हालांकि, इसका कारण प्रदेश में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत भी है. हिमाचल प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय (Minority community) के तौर पर मुस्लिम वर्ग की आबादी काफी कम है प्रदेश में चंबा, सिरमौर, बिलासपुर, मंडी और ऊपरी शिमला में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं. यदि प्रतिनिधित्व के हिसाब से देखा जाए तो हिमाचल विधानसभा में राजपूत (Rajput) और ब्राह्मण (Brahmin) वर्ग का वर्चस्व है.
प्रदेश में इस समय कुल 68 विधानसभा क्षेत्र हैं. यदि, अल्पसंख्यकों के हिसाब से देखा जाए तो इस सिख समुदाय (Sikh community) से एक विधायक, इससे पूर्व हिमाचल विधानसभा में हरि नारायण सैनी (Hari Narayan Saini) के रूप में एक दमदार सिख विधायक हुए. वे मंत्री भी रहे फिलहाल हिमाचल में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं हुआ है. इसका बड़ा कारण यह है कि हिमाचल में मुस्लिम समुदाय की आबादी 2.1 फीसदी से कुछ ही अधिक है. यही नहीं सिख आबादी मुस्लिम आबादी से कम है, लेकिन सिखों का प्रतिनिधित्व हिमाचल की राजनीति में अकसर रहा है.
हिमाचल छोटा पहाड़ी राज्य है और यहां की आबादी 70 लाख से अधिक है. हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो इसका गठन 15 अप्रैल 1948 को हुआ था. दूरदर्शी नेता और हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार (Dr. YS Parmar) के प्रयासों से 25 जनवरी 1971 को हिमाचल पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने वाला देश का 18वां प्रदेश बना. आरंभ से ही हिमाचल की राजनीति में ब्राह्मण और राजपूत वर्ग का वर्चस्व रहा है.
विभिन्न चरणों से गुरजरते हुए 1963 में हिमाचल विधानसभा के इतिहास में ऐसा दिन आया जब इसकी पहली बैठक हुई. हिमाचल में विधानसभा की निरंतरता इसी साल यानी वर्ष 1963 से मानी जाती है. वर्ष 1988 में हिमाचल विधानसभा ने रजत जयंती मनाई. बाद में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर 1971-72 मेंं डी-लिमिटेशन (de-limitation) के बाद विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 68 हो गई.
हिमाचल विधानसभा ने अपने गठन के बाद से कई विलक्षण आयाम हासिल किए हैं. यह देश की पहली ई-विधानसभा है. सात साल पहले यह विधानसभा पूरी तरह से पेपरलेस हो गई थी. इसके अलावा यहां बजट भी पेपरलेस ही पेश किया जाता है. हिमाचल में डॉ. वाईएस परमार पहले मुख्यमंत्री थे वे राजपूत समुदाय से संबंध रखते थे. हिमाचल में डॉ. परमार के बाद रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh), प्रेमकुमार धूमल (Premkumar Dhumal) व मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Chief Minister Jairam Thakur) राजपूत वर्ग से हैं. शांता कुमार(Shanta Kumar) दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे और वे ब्राह्मण वर्ग से संबंध रखते हैं.