कोलकाता : उनका पश्चिम बंगाल से गहरा नाता है. कोलकाता अब भी उनके प्रेम का शहर बना हुआ है. वे कोलकाता से हजारों किलोमीटर दूर हो सकते हैं लेकिन उनका जज्बा पश्चिम बंगाल के विकास पर अपडेट रहने के लिए खुद को प्रेरित करता है.
उनके अनुसार पश्चिम बंगाल में राजनीति का मौजूदा चलन न केवल राजनीतिक नैतिकता का पतन प्रदर्शित करता है बल्कि समग्र नैतिक मूल्यों में भी भारी गिरावट दर्शाता है. गैर-निवासी बंगालियों ने भी सभी राजनीतिक दलों के बीच फिल्मी दुनिया की मशहूर हस्तियों को उम्मीदवार के रूप में पेश करने की प्रवृत्ति पर काफी निराशा जताई.
उन्होंने सवाल किया कि इनमें से कितने लोग हैं जो एक और सुनील दत्त बन सकते हैं. जिन्होंने अपने अभिनय करियर के साथ राजनीतिक गतिविधियों को मिक्स नहीं किया.
शिक्षा का राजनीतिकरण
नई दिल्ली के शिक्षाविद् चिराश्री दास गुप्ता, जिन्होंने अपनी स्कूली और उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की है, उन्हें लगता है कि शिक्षा पाठ्यक्रम का राजनीतिकरण बंगाल के लिए सदियों से अभिशाप रहा है. यह अभिशाप अभी भी जारी है. वाम मोर्चे के शासन के दौरान शिक्षा का विमुद्रीकरण हुआ.
2011 के बाद सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि आंदोलन पर एक अलग अध्याय स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि अगर शासन में बदलाव हुआ तो पाठ्यक्रम का भगवाकरण हो सकता है.
निवेशकों के लिए खराब माहौल