देहरादून: उत्तराखंड में राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं, लेकिन मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश के तमाम क्षेत्रों की स्थिति खराब होती जा रही है, क्योंकि प्रदेश में भारी बारिश का सिलसिला शुरू होने के बाद न सिर्फ भूस्खलन की समस्याएं बढ़ जाती हैं, बल्कि जान माल का काफी नुकसान होता है.भूस्खलन को रोकने के लिए कोई ट्रीटमेंट प्लान तैयार नहीं किया गया है. ऐसे में सड़कों के मरम्मत कार्यों को लेकर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं. हिमालयी क्षेत्रों में आए दिन होने वाला भूस्खलन हमेशा ही राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती रहा है. देश में कुल भूमि का करीब 12 फीसदी हिस्सा भूस्खलन से प्रभावित है. जिन क्षेत्रों में आए दिन भूस्खलन होता है. वह क्षेत्र काफी संवेदनशील हैं.
भूस्खलन से हिमालयी सड़कों को होता है नुकसान:देश के पश्चिमी घाट में नीलगिरि की पहाड़ियां, कोंकण क्षेत्र में महाराष्ट्र, पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में दार्जिलिंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के तमाम क्षेत्र भूस्खलन के दृष्टि से काफी संवेदनशील हैं. वर्तमान स्थिति यह है कि उत्तराखंड राज्य में चिन्हित तमाम भूस्खलन प्रोन एरिया हैं, जहां भूस्खलन होता रहता है. वहीं, सड़कें बाधित होने पर सड़क मार्ग को खोलने के लिए मशीनें तैनात की जाती हैं, लेकिन अभी तक भूस्खलन को रोकने के लिए ठोस ट्रीटमेंट पर ध्यान नहीं दिया गया. जिसके चलते हर साल भारी संख्या में सड़कों को नुकसान पहुंचता है.
रुद्रप्रयाग के बीच दर्जन भर भूस्खलन जोन सक्रिय:इसके अलावा ऑल वेदर रोड के कार्य के बाद से ही रुद्रप्रयाग में भूस्खलन के नए डेंजर जोन विकसित हो गए हैं. बरसात की वजह से ऋषिकेश से बदरीनाथ और रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग की स्थिति बेहद ख़राब है. तो वहीं, ऑलवेदर रोड परियोजना के तहत दोनों एनएच के चौड़ीकरण के कार्य से पहाड़ कमजोर हो गए हैं.जिसके चलते हल्की सी बारिश के बाद से ही पहाड़ दरकने लगते हैं. ऑल वेदर रोड परियोजना के चलते ऋषिकेश बदरीनाथ हाईवे पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच 35 किमी के क्षेत्र में दर्जन भर भूस्खलन जोन सक्रिय हो गए हैं.