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यदि दो लोग स्वेच्छा से शादी या लिव-इन में साथ रहना चाहें तो कोई 'मॉरल पुलिसिंग' नहीं कर सकता: मप्र HC

अदालत ने कहा कि संविधान इस देश के प्रत्येक प्रमुख नागरिक को अपनी या अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने का अधिकार देता है.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

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Published : Jan 31, 2022, 2:54 PM IST

जबलपुर :मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि दो व्यस्क शादी या लिव-इन-रिलेशनशिप के जरिए साथ रहना चाहते (adults are willing to stay together by way of marriage or a live-in relationship) हैं, तो किसी को भी 'मॉरल पुलिसिंग' (moral policing) की अनुमति नहीं दी जा सकती है. जस्टिस नंदिता दुबे की एकल पीठ ने 28 जनवरी को जबलपुर निवासी गुलजार खान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (habeas corpus petition) का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की.

याचिका में खान ने कहा था कि उसने महाराष्ट्र में आरती साहू (19) से शादी की थी. साहू ने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपना लिया है. खान ने आरोप लगाया कि साहू को उसके माता-पिता जबरन वाराणसी ले गये और अवैध रुप से हिरासत में रखा है. आरती साहू को 28 जनवरी को महाधिवक्ता कार्यालय से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए अदालत में पेश किया गया.

अदालत ने इस तथ्य का जिक्र किया कि राज्य ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 (Madhya Pradesh Freedom of Religion Act, 2021) के प्रावधानों के मद्देनजर आपत्ति जताई है. सुनवाई के दौरान सरकार ने पुरजोर दलील दी कि मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता कानून की धारा तीन का उल्लंघन कर संपन्न हुआ कोई भी विवाह अमान्य और शून्य माना जाएगा. मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धारा तीन के अनुसार कोई भी व्यक्ति धर्मांतरण, धमकी या बल का उपयोग कर अनुचित प्रभाव, जबर्दस्ती विवाह या कोई धोखाधड़ी का उपयोग करके किसी भी अन्य व्यक्ति को धर्मांतरित करने या धर्म परिवर्तन कराने का प्रयास नहीं करेगा.

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अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में किसी भी नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जिसमें बगैर किसी दबाव के अपनी मर्जी से दो वयस्क शादी के माध्यम से या लिव-इन-रिलेशनशिप में एक साथ रहने के इच्छुक हैं. अदालत ने कहा कि महिला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने याचिकाकर्ता से शादी कर ली है और वह उसके साथ रहना चाहती है. आरती साहू एक बालिग है और उसकी उम्र किसी भी पक्ष द्वारा विवादित नहीं है.

अदालत ने कहा कि संविधान इस देश के प्रत्येक प्रमुख नागरिक को अपनी या अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने का अधिकार देता है. अदालत ने कहा कि इन परिस्थितियों के मद्देनजर सरकारी वकील की आपत्तियां और इस युवती को नारी निकेतन भेजने की अपील खारिज की जाती है. साथ ही शासन और पुलिस अधिकारियों को महिला को उसके पति को सौंपने और यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि दोनों सुरक्षित अपने घर पहुंचे. अदालत ने पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि भविष्य में भी महिला और उसके पति को उसके माता-पिता से किसी तरह का कोई खतरा नहीं हो.

(पीटीआई-भाषा)

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