नई दिल्ली : मजदूर कांग्रेस (इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष केएन त्रिपाठी ने कहा कि 21 राज्यों के पास मनरेगा का फंड खत्म हो गया है. इसके कारण 50 करोड़ मजदूरों के सामने संकट खड़ा हो गया है. यह सब असंगठित मजदूर हैं. इस सबके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है.
उन्होंने कहा कि 2020-21 में मनरेगा का बजट 1.11 लाख करोड़ था. पिछले साल कोरोना की पहली लहर में जब कई लोग बेरोजगार हो गए थे, तो मनरेगा ने ही सहारा दिया था. 2021-22 में केंद्र सरकार ने मनरेगा का बजट घटाकर 73,000 करोड़ कर दिया. बजट कम होने के कारण राज्यों के पास मनरेगा का फंड खत्म हो गया है, जबकि इस वित्तीय वर्ष में पांच महीने बाकी हैं. 50 करोड़ असंगठित मजदूर कैसे अपना जीवन व्यापन करेंगे यह मैं केंद्र सरकार से पूछना चाहता हूं. केंद्र सरकार को तुरंत संसद का सत्र बुलाकर अनुपूरक बजट पास कराना चाहिए. पैसा जारी करना चाहिए.
वहीं ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने PM मोदी को चिट्ठी लिखी है. उन्होंने मांग की है कि समय रहते मनरेगा के तहत मिलने वाले वेतन का आवंटन किया जाए. केंद्र के पास ओडिशा का 1,088 करोड़ बकाया है. गरीब लोगों को मनरेगा के जरिये रोजगार मिलता है. समय रहते वेतन नहीं दिया गया तो उन लोगों के सामने मुसीबत खड़ी हो जाएगी. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी मनरेगा को लेकर PM मोदी को पत्र लिखा है. उन्होंने तत्काल धन राशि जारी करने की मांग की है. उन्होंने पत्र में लिखा कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य को जारी 35,242 मिलियन रुपये की पूरी राशि का 15 सितंबर तक पूरी तरह से उपयोग किया जा चुका है. अब तक फंड जारी नहीं किया गया जिसके चलते मजदूरों का बकाया राशि 11,781 मिलियन रुपया हो गया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में 21 राज्यों के पास मनरेगा का फंड खत्म हो गया है. 2021-22 में मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपया निर्धारित किया गया था. 29 अक्टूबर तक देय भुगतान सहित कुल व्यय पहले ही 79,810 करोड़ तक पहुंच गया था जिससे योजना संकट में आ गई. 21 राज्यों ने नकारात्मक संतुलन दिखाया है जिसमें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सबसे खराब स्थिति में है.