नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पत्नी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए तमिलनाडु के एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा है कि न्यायेतर स्वीकारोक्ति हमेशा सबूत का एक कमजोर पार्ट होता है और न्यायेतर स्वीकारोक्ति के संबंध में अभियोजन पक्ष के मामले की वास्तविकता पर गंभीर संदेह है.
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और संजय करोल की पीठ ने कहा, 'न्यायेतर स्वीकारोक्ति हमेशा सबूत का एक कमजोर पार्ट होता है और इस मामले में....... न्यायेतर स्वीकारोक्ति के संबंध में अभियोजन पक्ष के मामले की वास्तविकता के बारे में गंभीर संदेह है. इसलिए, न्यायेतर स्वीकारोक्ति के बारे में अभियोजन पक्ष का मामला स्वीकृति के लायक नहीं है.'
शीर्ष अदालत ने एक ग्राम प्रशासनिक अधिकारी के समक्ष किए गए न्यायेतर कबूलनामे के अभियोजन पक्ष के दावे पर संदेह जताया. इसमें कहा गया कि जहां तक अपीलकर्ता के कहने पर शव की कथित बरामदगी का सवाल है, शव ऐसे स्थान से बरामद किया गया था जो सभी के लिए सुलभ था. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अभियोजन पक्ष का मामला नहीं है कि जिस स्थान पर शव को दफनाया गया था, वह केवल अपीलकर्ता को ही पता था.
पीठ ने कहा, अपीलकर्ता के कहने पर एक शव की बरामदगी और अपीलकर्ता के कहने पर अपराध के कथित साधन की बरामदगी के संबंध में अभियोजन पक्ष के मामले की वास्तविकता पर गंभीर संदेह है.