पटना : बिहार में जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट के बाद नीतीश सरकार ने आरक्षण की सीमा 75% तक बढ़ा दी है. पिछड़ा, अति पिछड़ा और एससी-एसटी के लिए पहले 50% आरक्षण था, जिसे बढ़ाकर 65% कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 50% ही आरक्षण की सीमा तय कर रखी है. ऐसे में संविधान के जानकार भी कह रहे हैं कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाना तय है.
आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा: इसको लेकर नीतीश सरकार चिंता में है. इसीलिए आरक्षण की सीमा बढ़ाने के बाद इसे केंद्र से संविधान संशोधन कर नौवीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा की गई है. तमिलनाडु में नौवीं अनुसूची में डाले जाने के कारण ही आरक्षण की सीमा 69% है, इसका उदाहरण भी दिया जा रहा है. आरक्षण की सीमा बढ़ाने और केंद्र सरकार से संविधान संशोधन कर इसे नौवीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा किए जाने पर एक तरफ सियासत शुरू हो गई है, तो दूसरी तरफ संविधान के जानकार अपने तरीके से इसका विश्लेषण कर रहे हैं.
SC में 75% आरक्षण का मुद्दा गया तो..? : पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार सिन्हा का कहना है कि ''सरकार क्या कोई भी व्यक्ति नौवीं अनुसूची में शामिल करने की डिमांड कर सकता है. लेकिन इसके लिए संविधान में केंद्र सरकार को संशोधन करना होगा. नवमी अनुसूची में जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है. ऐसे नवमी अनुसूची में बिना डाले भी बिहार सरकार इसे लागू कर सकती है. लागू कर भी दिया है. लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा 100% तय है.''
50 फीसदी पर अटक जाएगा बिहार में आरक्षण : नीतीश सरकार को इसी की चिंता है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा और फिर आरक्षण की सीमा 50% पर आकर ही अटक जाएगी. इसीलिए नीतीश सरकार कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार से अनुशंसा की है कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने का जो फैसला हुआ है. इसे संविधान संशोधन कर नवमी अनुसूची में डाला जाए.
वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी तो यहां तक कह रहे हैं कि ''भारत सरकार भी आरक्षण के पक्ष में है. बीजेपी भी समर्थन दे रही है, तो ऐसे में कहीं कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. सब पक्ष में है तो नवमी अनुसूची में डालने में केंद्र सरकार को कोई दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए. अब तो इसी से पता चल जाएगा कौन पक्ष में है और कौन विपक्ष में है.''
केंद्र को घेरने की कोशिश में जेडीयू : एक तरह से विजय चौधरी ने केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की है. उनका एक और तर्क है कि बिहार से ही जमींदारी उन्मूलन को लेकर जो प्रस्ताव भेजा गया था पहली बार संविधान का संशोधन हुआ और उसे नवमी अनुसूची में डाला गया था. तमिलनाडु में भी जो आरक्षण लागू है, उसे नौवीं अनुसूची में डाला गया है. हम लोग भी चाहते हैं कि बिहार का आरक्षण केंद्र सरकार संविधान संशोधन कर नौवीं अनुसूची में डाल दें जिससे यह न्यायिक पचड़े में ना पड़े.