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बिहार में आरक्षण पर फंसा पेंच! मामला पहुंचा SC तो बैक फुट पर होगी सरकार, जानिए गुणा गणित - Nitish Government and Central Government

Reservation in Bihar : बिहार में जातीय गणना के आधार पर आरक्षण का दायरा बढ़ाया जा चुका है. लेकिन अब बिहार सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी टेंशन इससे बढ़ गई है. क्योंकि अगर केंद्र सरकार बिहार में नए आरक्षण संसोधन को नौवीं अनुसूची में नहीं डालती है तो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर बैक किया जा सकता है. अगर केंद्र ने ऐसा नहीं किया तो जेडीयू केंद्र सरकार को आरक्षण विरोधी ठहराएगी. फिर भी इसमें एक पेंच है, जिसको लेकर दोनों सरकारें पशोपेश में है. पढ़ें पूरी खबर-

बिहार में आरक्षण पर फंसा पेंच!
बिहार में आरक्षण पर फंसा पेंच!

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 23, 2023, 9:46 PM IST

बिहार में आरक्षण पर फंसा पेंच! समझें पूरा समीकरण

पटना : बिहार में जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट के बाद नीतीश सरकार ने आरक्षण की सीमा 75% तक बढ़ा दी है. पिछड़ा, अति पिछड़ा और एससी-एसटी के लिए पहले 50% आरक्षण था, जिसे बढ़ाकर 65% कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 50% ही आरक्षण की सीमा तय कर रखी है. ऐसे में संविधान के जानकार भी कह रहे हैं कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाना तय है.

आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा: इसको लेकर नीतीश सरकार चिंता में है. इसीलिए आरक्षण की सीमा बढ़ाने के बाद इसे केंद्र से संविधान संशोधन कर नौवीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा की गई है. तमिलनाडु में नौवीं अनुसूची में डाले जाने के कारण ही आरक्षण की सीमा 69% है, इसका उदाहरण भी दिया जा रहा है. आरक्षण की सीमा बढ़ाने और केंद्र सरकार से संविधान संशोधन कर इसे नौवीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा किए जाने पर एक तरफ सियासत शुरू हो गई है, तो दूसरी तरफ संविधान के जानकार अपने तरीके से इसका विश्लेषण कर रहे हैं.

SC में 75% आरक्षण का मुद्दा गया तो..? : पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार सिन्हा का कहना है कि ''सरकार क्या कोई भी व्यक्ति नौवीं अनुसूची में शामिल करने की डिमांड कर सकता है. लेकिन इसके लिए संविधान में केंद्र सरकार को संशोधन करना होगा. नवमी अनुसूची में जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है. ऐसे नवमी अनुसूची में बिना डाले भी बिहार सरकार इसे लागू कर सकती है. लागू कर भी दिया है. लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा 100% तय है.''

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50 फीसदी पर अटक जाएगा बिहार में आरक्षण : नीतीश सरकार को इसी की चिंता है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा और फिर आरक्षण की सीमा 50% पर आकर ही अटक जाएगी. इसीलिए नीतीश सरकार कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार से अनुशंसा की है कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने का जो फैसला हुआ है. इसे संविधान संशोधन कर नवमी अनुसूची में डाला जाए.

वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी तो यहां तक कह रहे हैं कि ''भारत सरकार भी आरक्षण के पक्ष में है. बीजेपी भी समर्थन दे रही है, तो ऐसे में कहीं कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. सब पक्ष में है तो नवमी अनुसूची में डालने में केंद्र सरकार को कोई दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए. अब तो इसी से पता चल जाएगा कौन पक्ष में है और कौन विपक्ष में है.''

विजय चौधरी

केंद्र को घेरने की कोशिश में जेडीयू : एक तरह से विजय चौधरी ने केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की है. उनका एक और तर्क है कि बिहार से ही जमींदारी उन्मूलन को लेकर जो प्रस्ताव भेजा गया था पहली बार संविधान का संशोधन हुआ और उसे नवमी अनुसूची में डाला गया था. तमिलनाडु में भी जो आरक्षण लागू है, उसे नौवीं अनुसूची में डाला गया है. हम लोग भी चाहते हैं कि बिहार का आरक्षण केंद्र सरकार संविधान संशोधन कर नौवीं अनुसूची में डाल दें जिससे यह न्यायिक पचड़े में ना पड़े.

पहले भी सुप्रीम कोर्ट लगा चुका है रोक: बिहार सरकार की चिंता आरक्षण को लेकर क्यों है. इसका बड़ा कारण है 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में फैसला है. उस समय कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए जातिगत आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और राजस्थान में भी आरक्षण बढ़ाने का फैसला रोक लगा दिया.

जातीय गणना रिपोर्ट जारी करते अधिकारी

नौवीं सूची में डालना है विकल्प? : अब बिहार में भी नीतीश सरकार ने आरक्षण की सीमा 50% से बढ़कर 65% कर दिया है. सरकार को डर है कि इस कोर्ट में चुनौती दिया जाएगा और इसीलिए सरकार की ओर से कैबिनेट से प्रस्ताव पास कराकर नौवीं अनुसूची में केंद्र से शामिल करने का अनुरोध किया जा रहा है. क्योंकि तमिलनाडु में नौवीं अनुसूची के कारण ही आरक्षण 50% से अधिक लागू है.

नौवीं अनुसूची में डालने पर भी राहत नहीं : ऐसा नहीं है कि नौवीं अनुसूची में किसी कानून को शामिल कर लिया जाए तो उसकी न्यायिक समीक्षा हो ही नहीं सकती. जनवरी 2007 में तत्कालीन सीजेआई वाईके सबरवाल की अगुआई वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने नौवीं अनुसूची को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया था. कोर्ट ने साफ किया कि किसी कानून को नौवीं अनुसूची में डालने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि उसकी न्यायिक समीक्षा या संवैधानिक वैधता की जांच ही नहीं की जा सकती.

बिहार में आरक्षण की स्थिति : नए जातिगत सर्वे के मुताबिक, बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है. इनमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. यानी ओबीसी की कुल आबादी 63% है. अनुसूचित जाति की आबादी 19% और जनजाति 1.68% है. जबकि, सामान्य वर्ग 15.52% है. बिहार में पहले से 50% आरक्षण लागू है लेकिन जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बाद नीतीश सरकार ने उसे बढ़ाकर 65% कर दिया है.

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सभी वर्गों का बढ़ा आरक्षण: ईबीसी 18% से बढ़कर 25% कर दिया गया. ओबीसी को 12% से बढ़ाकर 18% कर दिया. जबकि एससी का आरक्षण 16% से 20%, तो वहीं एसटी का 1% बढ़कर 2% किया गया है. 10% ईडब्ल्यूएस के लिए भी है. यानी कुल आरक्षण अब 75% हो गया है. कई राज्यों में कोर्ट की ओर से रोक लगाने के बाद बिहार सरकार को भी इसका डर सता रहा है.

पशोपेश में केंद्र सरकार : फिलहाल अब गेंद्र केंद्र सरकार के पाले में डालकर जेडीयू ने मोदी सरकार की मुसीबत बढ़ा दी है. अब देखना है कि केंद्र सरकार इस पर क्या फैसला लेती है. बिहार के महा गठबंधन के घटक दलों को भी उसी का इंतजार है.

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