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धर्म और परंपराओं को संरक्षित कर रहा वृंदावन का निर्मोही अखाड़ा

देश और समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करना और किसी वाद-विवाद में न आने वाले साधु-संतों का अपना एक अलग ही समाज है. 'कहानी धार्मिक अखाड़ों की' आज की सीरीज में धर्म नगरी वृंदावन में स्थित श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा के बारे में विस्तार से जानें...

कहानी धार्मिक अखाड़ों की
कहानी धार्मिक अखाड़ों की

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Published : Jan 5, 2021, 8:16 PM IST

मथुरा : धर्म की नगरी वृंदावन में साधु-संत अखाड़े की डोर में बंधे हैं. वृंदावन गोविंद जी मंदिर के पास स्थित श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा में साधु-संत वर्षों से धर्म और परंपराओं को संरक्षित कर रहे हैं.

श्री पंच निर्मोही से नौ अखाड़े जुड़े
वृंदावन स्थित श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के महंत सुंदर दास महाराज ने बताया कि इस अखाड़े के अंतर्गत नौ अखाड़े आते हैं. जिसमें श्री पंच रामानंद निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच झाड़ियां निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच राधा बल्लवी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच मालधारी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच स्वामी विष्णु हरि निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच हरिहर व्यास निर्मोही अखाड़ा हैं. हजारों वर्ष पूर्व निर्मोही अखाड़े की स्थापना हुई थी. बालानंद महाराज ने ही निर्मोही अखाड़ों की स्थापना की थी. जिनकी गद्दी जयपुर में स्थित है.

जानें वृंदावन के निर्मोही अखाड़ा के बारे में

निर्मोही अखाड़े के उद्देश्य
महंत सुंदर दास महाराज ने बताया कि समाज और मनुष्य की रक्षा करना हमारा उद्देश है. जैसे देश की सीमा पर रक्षा भारतीय फौज करती है उसी तरह निर्मोही अखाड़े के संत सुरक्षा करते हैं. निर्मोही अखाड़े की स्थापना के समय शस्त्र विद्या काफी अहम मानी जाती थी. लेकिन समाज और समय में परिवर्तन हुआ तो शस्त्र विद्या में कुछ ही संत रुचि रखते हैं. निर्मोही अखाड़ा समाज के प्रति अपना काम करता आ रहा है, किसी के सामने दिखा कर काम नहीं किया जाता है.

निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत साधु-संत समय जरूरत पड़ने पर देश के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं. साधु निस्वार्थ भाव रखकर हिंदुओं को ठाकुर जी के प्रति जागृत करते हैं. कुछ लोगों की समस्याओं को बिना निस्वार्थ के निवारण भी किया जाता है.

अखाड़े के संतो का समय के हिसाब से परिवर्तन
महंत सुंदर दास महाराज ने कहा कि धर्म के प्रति देश के प्रति साधु की भावना होती है. निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत जो साधु संत होते हैं, उनके साथ समय-समय पर बैठक भी की जाती है. कुंभ के समय भी सभी साधु-संत बैठक करते हैं. कुंभ से पहले साधुओं की बैठक आदि काल से चली आ रही है, जो आज परंपरा निभाई जाती है.

निर्मोही अखाड़े में पदों का चयन
महंत सुंदर दास महाराज ने बताया कि संतों की सहमति होने के बाद निर्मोही अनी अखाड़े में पदाधिकारी नियुक्त किया जाते हैं. जो संत पदाधिकारी बनता है वह अखाड़े के प्रति जिम्मेदारी और जागरूकता का निस्वार्थ होकर काम करता है. अखाड़े को प्रोत्साहित करने के लिए अग्रसर होता है. कुछ अखाड़ों में पदाधिकारी का पद 12 साल बाद परिवर्तन होता है, लेकिन कुछ अखाड़ों में आजीवन काल के लिए पदाधिकारी बनाए जाते हैं. निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत जो पदाधिकारी होते हैं उन्हीं में से एक संत का चयन होता है. अखाड़े के प्रति व्यवहार, कर्मठ योगदान और अखाड़े को अग्रसर आगे की ओर ले जाना यह सब साधु संतों की सहमति के बाद उत्तराधिकारी का पद दिया जाता है.

निर्मोही अखाड़े के नियम
निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत संत बनने के लिए सन्यासी संत होना चाहिए. अखाड़े के प्रति हर तरह की निर्भरता रखता हो और अखाड़े के नियम का पालन करे. शादी न करना इस अखाड़े का नियम है. निर्मोही अखाड़े की शाखाएं कई जगह स्थापित है उज्जैन में हरिद्वार में देहरादून में गुजरात में शाखाएं बनी हुई हैं. महंत सुंदर दास महाराज ने कहा कि सूर्योदय से पहले संत अपनी दिनचर्या में लग जाता है. स्नान करते हैं भजन कीर्तन में लीन हो जाते हैं. ठाकुर जी की सेवा और पूजा पाठ की जाती है.

इस तरह होती है साधु-संतों की दिनचर्या

शिवराम दास संत ने बताया कि प्रत्येक शीतकाल में हम वृंदावन में आकर निर्मोही अखाड़ा परिषद में रुकते हैं. महाराज जी के सानिध्य में हम लोग यहां हमेशा से आते हैं. निर्मोही अखाड़े के साधु-संत प्रातः 4:00 बजे उठने के बाद सबसे पहले और स्नान करते हैं. इसके बाद ठाकुरजी पूजा-आरती करते हैं. सुबह 7 बजे पंगत होती है, जिसमें साधु-संत एक साथ भोजन ग्रहण करते हैं. इसके बाद महाराज जी के प्रवचन सुनाए जाते हैं और फिर गुरु मंत्र का अभ्यास करते हैं. साधु-संत योग भी करते हैं और शाम को शयनभोग करने के बाद विश्राम करते हैं.

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