चंद्रपुर: महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में मानव-वन्यजीव संघर्ष चरम पर पहुंच गया है. यह दोनों के वजूद पर खतरे की घंटी है. इस पर काबू पाने के वन विभाग के प्रयास भी विफल होने लगे हैं. इससे उबरने के लिए ताडोबा-अंधारी बाघ परियोजना में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इसके लिए बफर क्षेत्र के सीतारामपेठ गांव को चुना गया है. ताडोबा-अंधारी टाइगर प्रोजेक्ट के एरिया डायरेक्टर जितेंद्र रामगांवकर ने ईटीवी इंडिया को बताया कि यह सिस्टम जल्द ही शुरू किया जाएगा. इस प्रणाली की मदद से गांव के आसपास बाघ और तेंदुआ आ जाए तो उसकी सही पहचान होने पर ग्रामीणों को तुरंत सूचना मिल जाएगी.
ताडोबा-अंधारी बाघ परियोजना से बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है लेकिन जैसे-जैसे वन क्षेत्र कम हो रहा है, जंगल के आसपास बाघों और तेंदुओं की मुक्त आवाजाही हो रही है. यहां तककि जंगल पर निर्भर ग्रामीणों को भी वन क्षेत्र में आना-जाना पड़ता है. कई लोगों को विशेष मवेशी चराने के लिए वन क्षेत्र में जाना पड़ता है. इसमें मानव वन्य जीवों के संघर्ष की कई घटनाएं घटित होती हैं. इसके बाद वन विभाग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. अपनी फसलों को शाकाहारी जानवरों से बचाने के लिए, जो अक्सर कृषि फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, कुछ किसान अपने खेतों के किनारे बिजली के तार छोड़ देते हैं और उन्हें बाड़ लगा देते हैं. इससे अक्सर बाघ या तेंदुए की मौत हो जाती है.
चंद्रपुर जिले में ये घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं. इसलिए इन आंकड़ों को कम करने के लिए ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व और वन विभाग के सामने बड़ी चुनौती है. अब एक नए विकल्प के तौर पर पहली बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल ग्रामीणों को बाघों और तेंदुओं से आगाह करने के लिए किया जाएगा. यह प्रयोग देहरादून की एक कंपनी करेगी. दिलचस्प बात यह है कि इस तरह का प्रयोग पहली बार किसी राष्ट्रीय टाइगर रिजर्व में किया जा रहा है. इसलिए इस प्रयोग पर पूरा देश ध्यान दे रहा है. ऐसी प्रणाली का उपयोग वर्तमान में सैन्य, सुरक्षा प्रणालियों, सीमावर्ती क्षेत्रों में किया जाता है लेकिन पहली बार किसी टाइगर रिजर्व में इसका इस्तेमाल होने जा रहा है.
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इसके लिए ताडोबा क्षेत्र के सीतारामपेठ गांव को चुना गया है. इस गांव के आसपास कैमरा नेटवर्क फैलाने का काम शुरू हो गया है. साथ ही जंगल की सटी सीमा पर भी ऐसे कैमरे लगाए जाएंगे जो बाघों और तेंदुओं का सटीक आंकलन करेंगे और वन विभाग को जानकारी मुहैया कराएंगे. उसके लिए एक सर्वर भी उपलब्ध कराया जाएगा. इस तकनीक की खासियत यह है कि इस सॉफ्टवेयर के जरिए सिर्फ बाघ और तेंदुओं को ही नोटिफाई किया जाएगा अगर दूसरे शाकाहारी जानवर होंगे तो वे इस सिस्टम में नहीं आएंगे. इस तरह की एक अभिनव पहल से मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मदद मिलेगी. अगर प्रयोग सफल रहा तो इसका व्यापक रूप से पूरे भारत में राष्ट्रीय बाघ परियोजनाओं में उपयोग किया जा सकता है.