नई दिल्ली :अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच तनाव (Tension escalates between Afghanistan and Pakistan) बढ़ने पर नई दिल्ली भी सतर्क (New Delhi also alert) है. नई दिल्ली के लिए पाकिस्तान व अफगानिस्तान के बीच संबंधों को सुगम (Facilitate relations between Pakistan and Afghanistan) बनाना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा (India's national security) के लिए प्रमुख मानदंड है.
जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, ऑर्गनाइजेशन एंड डिस्सआर्मामेंट में डिप्लोमेसी व डिस्सआर्मामेंट के प्रोफेसर डॉ स्वर्ण सिंह ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि पाकिस्तान की कठिनाई इस बात की सराहना करना है कि तालिबान अब एक आतंकवादी संगठन नहीं है. यह अब एक राज्य है. इसलिए उनकी प्राथमिकताएं, उनकी आवश्यकताएं हैं बहुत अलग होने जा रही हैं. वे उस धुन को नहीं गाने जा रहे हैं जो पाकिस्तान चाहता है कि वे गाएं.
डॉ सिंह ने कहा कि उनकी मुख्य चुनौती पाकिस्तान के माध्यम से तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना और मानवीय सहायता की सुविधा प्रदान करना है. दरअसल पाकिस्तान अकेले मान्यता प्रदान करने में सक्षम नहीं है. यह तनाव वास्तव में अब जमीन पर प्रतिबिंबित हो रहा है. यह तालिबान के केंद्रीय नेतृत्व की नहीं बल्कि भारत के लिए भी अच्छी खबर नहीं है.
अफगानिस्तान में निरंतर अस्थिरता वहां मानवीय सहायता प्रदान करने की सीमाएं निरंतर भारतीय सुरक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं. क्योंकि अफगानिस्तान को सभी अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता को पाकिस्तान से होकर गुजरना होगा और पाकिस्तान इसमें बड़ा सहायक होगा. तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय वैधता प्राप्त करने में पाकिस्तान की कठिनाई यह है कि तालिबान अब एक राज्य के रूप में कार्य कर रहा है. न कि एक आतंकवादी संगठन के रूप में. यही मुद्दा है जो तालिबान-पाकिस्तान के बीच गहरी उथल-पुथल पैदा कर रहा है.
प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि एक महत्वपूर्ण पहलू जो नई दिल्ली के लिए अत्यंत चिंता का विषय बन गया है. वह है लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन, जो भारत पर विभिन्न घातक हमलों के लिए जिम्मेदार हैं, अफगानिस्तान के विभिन्न हिस्सों में पिछली सरकार के खिलाफ तालिबान के साथ लड़ रहे हैं. अब जब तालिबान वापस सत्ता में आ गया है तो यह ध्यान रखना होगा कि इन इस्लामी उग्रवादी संगठनों की कश्मीर में गहरी जड़ें हैं, जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अधिक खतरा हैं.