नई दिल्ली :चीन की मदद से कंबोडिया में एक नौसेनिक अड्डे के नवीनीकरण का कार्य पूरा होने के करीब है, इससे भारत चिंतित होना लाजिमी है. क्योंकि इसका भारत-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा. रिपोर्टों और उपग्रह के चित्रों से पता चलता है किरॉयल कंबोडियन नौसेना द्वारा संचालित रीम नौसैनिक अड्डे पर नवीकरण कार्य के दौरान वहां पर एक प्रमुख घाट का निर्माण किया गया है जो विमान वाहक को लंगर डालने में सक्षम है. यह बेस कंबोडिया के सिहानोकविले प्रांत में थाईलैंड की खाड़ी के तट पर स्थित है.
इस बारे में अमेरिकी अधिकारी पहले ही संदेह जता चुके हैं कि इस नौसैनिक अड्डे का प्रयोग चीन की सेना द्वारा किया जाएगा. यदि यह सही है तो फिर हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती के बाद यह दूसरा विदेशी चीनी विदेशी नौसैनिक अड्डा होगा. वहीं इसके चालू हो जाने से भारत की भी चिंताएं बढ़ जाएंगी. भारत क्वाड का हिस्सा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका भी शामिल हैं. वहीं क्वाड क्षेत्र में चीनी आधिपत्य के मुकाबले स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहा है. शिलांग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉन्फ्लुएंस के सीनियर फेलो के. योहोम के अनुसार जिबूती में नौसैनिक अड्डा मुख्य रूप से समुद्री डकैती विरोधी अभियानों के लिए शुरू किया गया था.
उन्होंने कहा कि लेकिन अगर रीम नौसैनिक अड्डे के बारे में खबरें सच हैं, तो यह निश्चित रूप से भारत के लिए चिंता का कारण होगा. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विशेषज्ञ योहोम ने कहा कि चीन मूल रूप से दक्षिण चीन सागर में अपने विवादों और मलक्का जलडमरूमध्य में सुरक्षा पर अपनी चिंताओं की वजह से वैकल्पिक भूमि मार्गों की तलाश कर रहा है. ऐसे में रीम में नौसैनिक अड्डा चीन के आर्थिक और सैन्य दोनों ही हितों को पूरा कर सकता है. उन्होंने कहा कि चीन इस बात को लेकर भी घबराया हुआ है कि पूर्व चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ ने इसे मलक्का दुविधा कहा था. जबकि मलक्का जलडमरूमध्य मलेशिया और इंडोनेशियाई द्वीप सुमात्रा के बीच पानी का एक छोटा मार्ग है और दक्षिण चीन सागर के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है.