नई दिल्ली : स्वतंत्र भारत के पहले और सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार देने में उनके समकालीनों और विरोधियों की नजरंदाज कर दी गई भूमिका की पड़ताल करती हुई एक नई पुस्तक आई है, 'नेहरू: द डिबेट्स दैट डिफाइंड इंडिया' नामक पुस्तक.
पुस्तक के सह-लेखक त्रिपुरदमन सिंह और आदिल हुसैन हैं, जिसे गुरुवार को जारी किए जाने की संभावना है. यह कृति उन 'वैचारिक द्वंद्वों की पड़ताल करने का दावा करती है, जिसके माध्यम से नेहरूवादी सहमति - और आधुनिक भारत – को गढा गया था.'
दोनों लेखकों ने एक संयुक्त बयान में बताया, 'अपने समकालीनों के साथ नेहरू की चर्चा-बहस को देखने से हमें व्यक्ति और उनके विचारों की एक स्पष्ट झलक मिलती है. चूंकि अब समकालीन वैचारिक बहस में नेहरू एवं उनके समकालीनों के बीच की बहस को एक राजनीतक त्रुटि के रूप से फिर से उठाया जा रहा है, हमने सोचा कि इन राजनीतिक एवं वैचारिक संघर्षों के मूल में जाया जाए.'
समकालीन संवाद के थोपे गए तमगे से परे जाकर, पुस्तक उन चार मुकाबलों पर प्रकाश डालती है, जो नेहरू के राजनीतिक जीवन के चार समकालीन- मुहम्मद इकबाल, मुहम्मद अली जिन्ना, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी- के साथ हुए थे, जो उनके विचारों को समझने और उनके लंबे परवर्ती जीवन और वर्तमान पर प्रभाव को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं.
उन्होंने कहा, 'इन बहस ने जो आकार लिया, वह भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, जो यह निर्धारित करती है कि घटनाओं का पेंडुलम किस तरह दिशा में जाएगा.'