अहमदाबाद :गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य के धर्मांतरण विरोधी नए कानून की अंतरधार्मिक विवाह संबंधी कुछ धाराओं के क्रियान्वयन पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी. मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बिरेन वैष्णव की खंडपीठ ने कहा कि लोगों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए अंतरिम आदेश पारित किया गया है.
राज्य की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने अब तक उच्च न्यायालय के आदेश पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अंतरिम रोक का स्वागत करते हुए कहा कि 'संपूर्ण कानून संविधान की भावना के खिलाफ है' और नागरिकों को अपना धर्म चुनने की स्वतंत्रता है.
विवाह के माध्यम से जबरन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन के लिए दंडित करने वाले गुजरात धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 को राज्य सरकार ने 15 जून को अधिसूचित किया गया था.
इसी तरह के कानून मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी भाजपा सरकारों द्वारा बनाए गए हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात शाखा ने पिछले महीने दाखिल एक याचिका में कहा था कि कानून की कुछ संशोधित धाराएं असंवैधानिक हैं.
मुख्य न्यायाधीश नाथ ने बृहस्पतिवार को कहा, 'हमारी यह राय है कि आगे की सुनवाई लंबित रहने तक धारा तीन, चार, चार ए से लेकर धारा चार सी, पांच, छह एवं छह ए को तब लागू नहीं किया जाएगा, यदि एक धर्म का व्यक्ति किसी दूसरे धर्म व्यक्ति के साथ बल प्रयोग किए बिना, कोई प्रलोभन दिए बिना या कपटपूर्ण साधनों का इस्तेमाल किए बिना विवाह करता है और ऐसे विवाहों को गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से किए गए विवाह करार नहीं दिया जा सकता.'
उन्होंने कहा, 'अंतरधार्मिक विवाह करने वाले पक्षों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए यह अंतरिम आदेश जारी किया गया है.'
इन धाराओं पर रोक का प्रभावी अर्थ यह है कि इस कानून के तहत केवल उसके अंतरधार्मिक विवाह के आधार पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है.
राज्य के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने स्पष्टीकरण मांगा और कहा कि क्या होगा यदि विवाह के परिणामस्वरूप जबरन धर्म परिवर्तन होता है, तो मुख्य न्यायाधीश नाथ ने कहा, 'बल या प्रलोभन या धोखाधड़ी का एक मूल तत्व होना चाहिए. इसके बिना आप (आगे) नहीं बढ़ेंगे , हमने आदेश में बस इतना ही कहा है.'