नई दिल्ली: वह दिन दूर नहीं जब भारतीय युवाओं को जापानी भाषा सीखने के लिए जापान जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. वे गुवाहाटी या कोहिमा में भी जापानी भाषा सीखने में सक्षम होंगे. यह कुछ ऐसा ही होगा, जैसे शिलांग के वार्ड्स लेक और पोलो ग्राउंड के चेरी ब्लॉसम, जापान के प्रसिद्ध चेरी ब्लॉसम की स्वप्निल सुंदरता को दिखाएंगे. यह भविष्य की कुछ झलकियां हैं, जो भारत-जापान को और करीब लाएंगी. साथ ही इनके रणनीतिक मायने भी फायदेमंद होंगे.
19-20 मार्च 2022 को नई दिल्ली में आयोजित 14वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में जापानी प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो (Japanese Prime Minister Kishida Fumio) के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Indian Prime Minister Narendra Modi) ने कई मुद्दों पर चर्चा की है. इस बातचीत के दौरान एक ऐसा क्षेत्र सुर्खियों में रहा, जहां दोनों देशों की रूचियां आपस में मेल खाती है. वह भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे कुल आठ राज्य शामिल हैं.
तीन लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश
इस क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त परियोजनाओं की विस्तृत श्रृंखला पर सहमति बनी है. दरअसल, पूर्वोत्तर का यह क्षेत्र रणनीतिक बिंदु से भी काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि यह चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के बीच स्थित है. जो कि एक पतली जमीनी गलियारे से भारतीय भूमि से जुड़ा हुआ है. शुरुआती सफलता से उत्साहित होकर दोनों देशों ने अगले पांच वर्षों में पांच ट्रिलियन येन यानी करीब 320000 करोड़ रुपये का नया निवेश लक्ष्य निर्धारित किया है.
भारत एक्ट ईस्ट पॉलिसी
भारतीय सीमाओं पर चीन के जुझारूपन और चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में पीएम मोदी ने कहा कि वर्तमान की भू-राजनीतिक घटनाएं नई चुनौतियां पेश कर रही हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री किशिदा की यह यात्रा भारत-जापान की रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी में नए आयाम जोड़ने में सफल रही है. यह संबंध दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग का संकेत है, जो बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय ऊर्जा और लोगों से लोगों को जोड़ने पर ध्यान देने की प्रतिबद्धता पर आधारित है. यह नई दिल्ली की प्रमुख एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy) के भी मुफीद है. जो मुक्त, समावेशी इंडो-पैसिफिक दृष्टि सुनिश्चित करने के लिए एक लीवर के रूप में काम करती है.
जापान निवेश के लिए तैयार
दूसरी ओर जापान इस क्षेत्र में निवेश करने का इच्छुक है. वह बुनियादी ढांचे के निर्माण वास्ते 2017 में पूर्वोत्तर के विकास के लिए भारत-जापान समन्वय मंच नामक एक निकाय की स्थापना भी कर चुका है. इस निकाय की छह बैठकें हो चुकी हैं. इसके अलावा, असम, मणिपुर और नागालैंड के उग्रवाद के खात्मे के साथ, भारत-चीन और सुदूर पूर्व की सड़कों पर पहले से कहीं अधिक शांति दिखती है. इसका परिणाम यह है कि भारत-चीन क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का विरोध करने के प्रयास में पूर्वोत्तर एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाएगा.