हैदराबाद : नेपाल ने जब से राजतंत्र की जगह संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य व्यवस्था को अपनाया है, तब से राजनीतिक अस्थिरता झेलता आ रहा है. पिछले 10 सालों से यहां की स्थिति अधिक खराब हुई है. इस अस्थिरता की मुख्य रूप से तीन वजहें हैं. नाजुक संवैधानिक संस्थाएं, महत्वाकांक्षी और सत्ता के भूखे राजनीतिक नेतृत्व और खंडित राजनीतिक परिदृश्य.
वर्तमान संकट की शुरुआत उस समय शुरू हुई, जब नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली ने गत दिसंबर में संसद भंग कर दी. अप्रैल-मई 2021 में नए चुनाव कराने की घोषणा की गई. यह नेपाल के संविधान का खुल्लम खुला उल्लंघन है. क्योंकि संविधान में विघटन का कोई प्रावधान नहीं है.
किसी भी कारण से अगर कोई प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की योग्यता खो देते हैं, या उनके पास बहुमत नहीं है, वैसी स्थिति में नए प्रधानमंत्री के चुनाव का स्पष्ट प्रावधान है.
प्रधानमंत्री ने बताया कि उनकी पार्टी के वरिष्ठ सहयोगी उन्हें सुचारू शासन चलाने नहीं दे रहे हैं. सत्तारूढ़ पार्टी की आंतरिक कलह एक वजह बताई गई.
निश्चित तौर पर उन्हें अपनी पार्टी में अपना समर्थन हासिल करना चाहिए था. ऐसा नहीं हो पाता, तो किसी दूसरे नेता के लिए मार्ग प्रशस्त कर देते.
ओली के मुख्य रूप से दो प्रतिद्वंद्वी हैं. पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' और माधव कुमार 'नेपाल'. इन दोनों नेताओं ने ओली पर सत्ता साझा करने के लिए हुए समझौते को तोड़ने के आरोप लगाए हैं. उनका ये भी आरोप है कि वह अपने पास अधिक से अधिक अधिकार रख रहे हैं. इसके जरिए वह संवैधानिक संस्थाओं और निर्णय लेने वाली प्रमुख संस्थाओं पर एकाधिकार चाहते हैं. उनके प्रशासन में भ्रष्टाचार बढ़ा है. वह सत्ता को चलाने में अक्षम साबित हो रहे हैं.
क्योंकि ओली का कदम सत्ता के प्रति उनके लालच को दर्शाता है, लिहाजा कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि चुनाव को आगे बढ़ाया जा सकता है. आपातकाल की घोषणा हो सकती है. संविधान को नष्ट किया जा सकता है. लंबे समय तक देश को अस्थिरता के दौर में धकेला जा सकता है.
ओली के इस कदम ने नेपाल की बिखरी हुई राजनीति को और अधिक विखंडित कर दिया है. नई राजनीतिक शक्तियों और उनके विलयण को बढ़ावा दिया है. ओली अपनी पार्टी में अल्पमत में हैं. पार्टी ने उन्हें निकालने की घोषणा भी कर दी है. पार्टी का विभाजन जारी है.
विभाजन की यह प्रक्रिया विभिन्न प्रांतों और जिलों के स्तर तक गहरी हो रही है. हालांकि, चुनाव आयोग ने अब तक 'वास्तविक' पार्टी को मान्यता नहीं दी है. मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस भी आंतरिक खंडन का सामना कर रही है. उसे भी नहीं पता है कि इस स्थिति से कैसे निपटें.
नेपाल में हिंदुत्व विचारधारा फिर से प्रबल हो रही है. मौजूदा स्थिति का फायदा उठाने के लिए हिंदूवादी संगठन फिर से अपने को एकट्ठा कर रहे हैं.
मधेशी समूह भी राजनीतिक रूख को करीब से देख रहे हैं.