वाराणसी:भारत वह देश है जो न सिर्फ सनातन, बल्कि अन्य धर्मों और जातियों के साथ-साथ दूसरे देशों की संस्कृति और सभ्यताओं को भी संभाले हुए है. वहीं, जब बात पड़ोसी मुल्क की आए तो निश्चित तौर पर भारत अपने पड़ोसी देश के साथ रिश्तों को बेहतर करने का प्रयास करता रहा है. इस बार नेपाल के साथ अपने रिश्ते को बेहतर करने का मौका भारत को मिलने जा रहा है, क्योंकि एक अप्रैल से नेपाल के प्रधानमंत्री शेर सिंह देउबा (Nepals Prime Minister Sher Bahadur Deuba) अपने तीन दिवसीय दौरे पर भारत आ रहे हैं. उनके इस दौरे से भारत और नेपाल के बीच रिश्ते को मिठास मिलने की पूरी उम्मीद की जा रही है.
चीन के साथ नेपाल के खड़े होने की वजह से भारत के साथ नेपाल के रिश्ते थोड़े बिगड़े जरूर थे, लेकिन नेपाली पीएम के तीन दिवसीय दौरे पर भारत आने से बिगड़े रिश्तों को एक नई ऊंचाइयां मिलने की संभावना जताई जा रही है. इन सबके बीच नेपाली प्रधानमंत्री को पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस भी आना है. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन के अलावा बनारस में मौजूद नेपाल की उस विरासत से भी वह रूबरू होंगे, जो सैकड़ों साल पुरानी है यानी बनारस से भारत और नेपाल के रिश्तों को मजबूती देने के लिए मौजूद नेपाली विरासत एक बड़ा किरदार निभा सकती है.
दरअसल, नेपाल और भारत हमेशा से ही एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण माने जाते रहे हैं. दोनों देशों की संस्कृति और सभ्यता लगभग एक सी है और नेपाल के लोग काशी से अटूट प्रेम और श्रद्धा रखते हैं. यही वजह है कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर के तर्ज पर वाराणसी के ललिता घाट पर नेपाल के तत्कालीन राजा राणा बहादुर साहा ने 1800ई. में काशी के इस स्थान पर पशुपतिनाथ मंदिर की रिप्लिका के रूप में एक भव्य मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था. हालांकि, 1806 में उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे राजा राजेंद्र वीर की ओर से 1843 में इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा कराया गया. यानी इस मंदिर को पूरा होने में लगभग 40 साल का वक्त लगा, लेकिन यह मंदिर भारत में नेपाल की उस सांस्कृतिक विरासत को आज भी समेट कर रखे हुए है, जिसके लिए नेपाल जाना जाता है.
मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि मंदिर का निर्माण नेपाल से आए कारीगरों ने यहां रहकर किया था. कारीगरों ने मंदिर में लगाई गई लकड़ी पर बेहतरीन नक्काशी देने के साथ ही इस पूरे मंदिर को नेपाल के संस्कृति और सभ्यता के अनुरूप डिजाइन किया है. मंदिर के चारों तरफ लकड़ी का दरवाजा और उस पर बेहतरीन नक्काशी इस मंदिर को अपने आप में अनूठा बनाती है. नेपाल के मंदिरों की तर्ज पर बाहर एक बड़ा सा घंटा, दक्षिण द्वार पर बाहर पत्थर का नंदी और मंदिर के मुख्य द्वार पर दो बैठे हुए शेर भी विद्यमान हैं. इतना ही नहीं 19वीं सदी के काल के अनुरूप बनाए गए इस मंदिर की डिजाइन और वास्तु शैली पूरी तरह से नेपाल के मंदिरों की तर्ज पर तैयार की गई है. अंदर मौजूद शिवलिंग भी नेपाल के पशुपतिनाथ शिवलिंग के जैसा ही है.