हैदराबाद : अफगानिस्तान को लेकर भारत सरकार की क्या है नीति, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है. तालिबान को मंजूरी मिलेगी या नहीं, सरकार ने 'वेट एंड वॉच' की नीति अपनाई है. विपक्षी पार्टियां लगातार सरकार को इस मामले पर कठघरे में खड़ कर रही हैं. ऐसे में आम लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर अफगानिस्तान को लेकर सरकार संशय में क्यों है. क्या हम नहीं जानना चाहते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अफगानिस्तान पर क्या नीति अपनाई थी. कांग्रेस तो जोर-शोर से इसका प्रचार भी करती है.
नेहरू अफगानिस्तान को लेकर क्या सोचते थे, पेश है उनकी यह राय. नेहरू ने 14 सितंबर 1959 को काबुल में एक भाषण दिया था. आप इस भाषण के कुछ अंश को यहां पढ़ सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि वे अफगानिस्तान को लेकर क्या सोचते थे.
अपनी इस यात्रा से लौटने के बाद नेहरू ने कहा था, 'हम पर पाकिस्तान द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि भारत, अफगानिस्तान पर दबाव बना रहा है. भारत ने अफगानिस्तान से गुप्त समझौता किया है. उसे पाकिस्तान के प्रति नीति अपनाने के लिए बाध्य किया जा रहा है. हकीकत ये है कि ऐसा कुछ नहीं है. हमने अफगानिस्तान की यात्रा के दौरान अपनी पुरानी दोस्ती को मजबूती दी है. हमारा और उनका हजारों साल का पुराना संबंध है.'
अपनी यात्रा के दौरान नेहरू ने जो भाषण दिए थे, आप भी पढ़िए.
'मुझे लगता है कि मैं किसी अजनबी देश या अजनबियों के बीच में नहीं आया हूं, बल्कि मुझे तो लगता है कि मैं अपनों के बीच हूं. यह हमारे लिए सही होगा कि हम हजारों सालों से चले आ रहे आपसी संबंधों पर विचार कर उसे विस्तार दें. कई बार हमारे संबंधों में संघर्ष भी देखा गया है, लेकिन राजनीतिक संबंधों में भौतिक संपर्क से ज्यादा अहम विचारों, दिलों और संस्कृतियों के मिलन का होता है. हमारी लंबी विरासत हमें बांधती है, प्रेरित करती है और उम्मीद है कि यह भविष्य को भी संवारने में मदद करेगी. वर्तमान में हम दोनों को करीब लाने के लिए थोड़ा ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है. पिछले 13 सालों में जब से हम आजाद हुए हैं, और दूसरे देशों से संबंधों को विकसित करने की स्वतंत्रता मिली है, पुराने संबंधों को जीवित करने का मौका मिला है, तो हमने निश्चित तौर पर अफगानिस्तान के बारे में सोचा. हम आपके बारे में बहुत अधिक दोस्ती को महसूस करते हैं. जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमें यह जानकर बहुत ही प्रसन्नता और संतुष्टि हुई कि नीतियों को देखने का हमारा और आपका व्यापक नजरिया समान है. हम दूसरे देशों को भी समान दृष्टिकोण से देखते हैं. यह नजरिया हम दोनों को एक साथ रखता है. प्रत्येक देश की अपनी समस्याएं होती हैं. और उनका समाधान भी उन्हें अपने प्रयासों से निकालना होता है. हां, कई बार हमें दूसरे देशों से मदद भी मिलती है. यह सहयोग से ही संभव हो पाता है. यद्यपि हमारे और आपके बीच कई समान समस्याएं हैं, निश्चित तौर पर मेरा विश्वास है कि उसे देखने का वृहत्तर दृष्टिकोण समान है.'