भोपाल।इस खबर को इसलिए पढ़िए कि सरकारी अस्पताल में सरकारी योजनाओं में मुफ्त डिलीवरी के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं को कैसे इंसान नहीं भेड़ बकरी समझा जाता है. इस खबर को इसलिए पढ़िए ताकि आप जान सकें कि मरीजों की जिंदगी से खेला कैसे जा रहा है. लापरवाही की हद कहां तक है. भोपाल के कोलार इलाके के सामुदायिक केन्द्र में एक गर्भवती को जनरल वार्ड में दर्द का इंजेक्शन देकर नर्स मरीज को भूल गई. बच्चा बाहर आ गया ये बताने के बाद भी नहीं आई और जनरल वार्ड में पुरुषों के सामने महिला की डिलीवरी हो गई. जिस वक्त महिला खून से लथपथ बिस्तर में पड़ी थी, तब नर्स स्टॉफ रुम में सुस्ता रही थी. डॉक्टर ड्यूटी के बाद घर जा चुकी थी. पुरुषों के सामने हुई इस डिलीवरी में इतनी ही लापरवाही नहीं हुई बल्कि डिलीवरी के बाद टांके लगाते हुए नर्सों ने पेट में बैन्डेज भी छोड़ दिया.
जनरल वार्ड में पुरुषों के सामने हो गई डिलीवरी:कोलार इलाके में रहने वाली 27 वर्ष की शिखा राजपूत अब खतरे से बाहर हैं, लेकिन दर्द उठने से लेकर अपनी पहली डिलीवरी और उसके बाद के छह दिन किसी नरक से कम नहीं थे. शिखा कोलार के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से डिलीवरी के दौरान इलाज ले रही थी. लिहाजा जब नौ महीने पूरे हुए उसके बाद भी इसी अस्पताल में गई जो मैटरिनिटी डैडिकेटेड अस्पताल है. शिखा बताती हैं, उस दिन मुझे हल्का-हल्का दर्द हो रहा था. मैने डॉक्टर को दिखाया उन्होंने चैकअप किया और फिर कहा कि मेरी तो ड्यूटी खत्म हो गई या तो किसी प्राइवेट अस्पताल में चले जाओ या फिर तुम्हारी डिलेवरी नर्स करवा देगी. डॉक्टर चली गई, मुझे जनरल वार्ड में भर्ती कर दिया गया. मेरे पति देवेन्द्र राजपूत से इंजेक्शन बुलवाए गए. मुझे दर्द के इंजेक्शन भी दे दिए. लेकिन कोई नर्स देखने भी नहीं आई. मेरी मां नर्स को कई बार बुलाने गई कि दर्द हो रहा है, बच्चा बाहर आ रहा लेकिन नर्स ये कहकर टालती रही कि अभी टाइम लगेगा. शिखा बताती हैं जब मेरी मां ने उन्हें कहा कि अब तो डिलीवरी हो ही गई अब तो आ जाइए तब आईं, उस समय तक तो मैं सिर से पांव तक खून में लथपथ पड़ी हुई थी. वो तो बच्ची बच गई वरना तो नीचे भी गिर सकती थी. शिखा की ये पहली डिलेवरी थी. वो कहती है मैं ये कभी नहीं भूल पाऊंगी. डॉक्टर से लेकर नर्सों तक की ऐसी लापरवाही कि मेरी तो जान पर बन आई थी.