नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों के चंदे से संबंधित चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर को चार याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू की थी. इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) तथा गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं.
जानकारी के मुताबिक, कोर्ट में गुरुवार को चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई दोबारा शुरू हुई. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई, जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले में सुनवाई कर रही है. गुरुवार को सीजेआई ने कहा कि चुनावी बांड योजना को लागू करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि इस योजना का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया में नकदी को कम करना, अधिकृत बैंकिंग चैनलों को प्रोत्साहित करना, सिस्टम में पारदर्शिता लाना और इसके साथ ही योजना को शक्ति केंद्र और लाभुक के बीच रिश्वत और बदले की भावना को वैध नहीं बनाना होना चाहिए. शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि केंद्र चुनावी बांड योजना की एक और प्रणाली डिजाइन कर सकता है जिसमें इस प्रणाली की खामियां न हों. जो पारदर्शी हो.
गुरुवार को केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती जहां दाता और दानकर्ता एक-दूसरे को नहीं जानते होंगे. न्यायमूर्ति खन्ना ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, मतदाताओं को दानदाताओं की पहचान के बारे में जानने की अनुमति क्यों नहीं दी जाए? जस्टिस खन्ना ने सुझाव दिया, क्यों न इसे खुला कर दिया जाए? सिर्फ मतदाता ही ऐसी स्थिति में क्यों रहे कि जिसे कुछ भी पता ना हो.
उन्होंने कहा कि मेहता का यह तर्क कि मतदाता को पता नहीं होगा, स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है. मेहता ने कहा कि फिर हम पिछली नीति पर वापस जाते हैं. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह प्रक्रिया (सुझाये गये विचारों के संबंध में) विधायिका और कार्यपालिका की ओर से तय होनी चाहिए. हमें यह नहीं करना है. सीजेआई ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा कि लेकिन ऐसा नहीं है कि या तो आपके पास यह है या आप पूरी नकदी प्रणाली में वापस चले जायें.
आप एक अन्य प्रणाली डिजाइन कर सकते हैं, जिसमें इस प्रणाली की खामियां नहीं हों, एक ऐसी प्रणाली तैयार करें जो आनुपातिक तरीके से संतुलन बनाती हो. यह कैसे किया जाना है (सरकार को सोचना है), हम उस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करेंगे. उल्लिखित पांच विचारों की पृष्ठभूमि में, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि एक सीमा थी कि कंपनी का दान शुद्ध लाभ के प्रतिशत से संबंधित होगा.