हैदराबाद : भारत व रूस के बीच ऐसे दिन भी रहे हैं, जब दोनों देशों के नेतृत्व ने यह प्रतिज्ञा की थी कि उनकी मित्रता समय की कसौटी पर खरी उतरती रहेगी. हालांकि, हालिया परिदृश्य में बदलाव होता दिख रहा है. भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका के करीब हो रहा है, तो रूस ने इस्लामाबाद के प्रति अपना झुकाव कर दिया है.
वहीं भारत इस बात से चिंतित है कि उसे रूस से जो रक्षा उपकरण मिले हैं वह चीन तक भी पहुंच रहे हैं. रिश्ते में इस तनाव के रूप में ऐसी खबरें भी थीं कि रूस ने अफगान शांति वार्ता से भारत का बहिष्कार करने की बात कही है. दरअसल, भारत-रूस शिखर बैठक पिछले साल दिसंबर में आयोजित की जानी थी. हालांकि, कोविड महामारी को शिखर सम्मेलन रद्द करने के लिए दोषी ठहराया गया था. यह बताया गया था कि रद्द करने के लिए दृश्य कारण के पीछे अन्य बातें भी थीं. वहीं इस साल के अंत में होने वाले पुतिन-मोदी शिखर सम्मेलन की तैयारियों के तहत दोनों देशों के विदेश मंत्री 6 अप्रैल 2021 को दिल्ली में मिले.
रिश्तों को मजबूत करना फायदेमंद
2018 में भारत ने रूस के साथ सुखोई खरीदने के लिए एक समझौते पर सहमति व्यक्त की थी. संयुक्त राज्य अमेरिका से प्रतिबंधों की चेतावनी के बावजूद 400 मिसाइल प्रणाली के लिए जमीन तैयार की गई. हाल में हुई विदेश मंत्रियों की बैठक में अमेरिकी चेतावनियों को ध्यान में रखने की जहमत नहीं उठाई गई. एक संयुक्त वक्तव्य में भारत और रूस के विदेश मंत्रियों जयशंकर और सर्गेई लावरोव ने घोषणा की कि दोनों देशों के रक्षा मंत्री रक्षा सहयोग पर विस्तृत चर्चा करेंगे. वक्तव्य का सार यह है कि दोनों देश संबंध में पारस्परिकता पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. रिश्तों को मजबूत करने के संयुक्त प्रयास दोनों के लिए फायदेमंद होंगे.
भारत-सोवियत संघ का पुराना सहयोगी
सोवियत संघ के विघटन से पहले मास्को भारत का एकमात्र विश्वसनीय रक्षा सहयोगी था. कुछ मतभेदों के बावजूद पुतिन ने सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में भारत के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों को जारी रखा. भारत ने परमाणु, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में रूस से सहयोग की इच्छा जताई. हालांकि, ऐसे भी मौके आए जब रूस ने भारत को अपनी प्राथमिकताओं का पालन करने से रोक दिया.
चीन के साथ बढ़ रही रूस की नजदीकी