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गर्मी में नक्सल ऑपरेशन कठिन, घने जंगलों में पीने के पानी के लिए जूझते हैं जवान

छत्तीसगढ़ के कई जिलों में नक्सलियों का आतंक है. पुलिस और अर्धसैनिक बल हमेशा तैनात रहते हैं और नक्सल ऑपरेशन के लिए जंगलों में सर्चिंग करते हैं. छत्तीसगढ़ में गर्मी के मौसम में नक्सल ऑपरेशन कठिन होता है. आज हम आपको बताएंगे कि गर्मी के मौसम में जवानों को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? कैसे एक-एक बूंद पानी के लिए जवानों को मशक्कत करनी पड़ती है?

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गर्मी के मौसम में नक्सल ऑपरेशन कठिन

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Published : Mar 3, 2022, 9:54 PM IST

रायपुर :छत्तीसगढ़ मेंगर्मी का मौसम दस्तक दे चुका है. गर्मी के मौसम में जंगल के नदी-नाले सूख जाते हैं. ऐसे में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जंगलों में सर्चिंग करने वाले जवानों को पीने के पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है. सर्चिंग के दौरान हमारे जवान जंगल के किसी भी गांव या बस्ती से नहीं गुजरते. जवानों को यह अंदेशा रहता है कि, कोई ग्रामीण नक्सलियों को उनके होने की सूचना ना दे दे. ऐसे में जवान कई दिनों तक जंगल के सुनसान इलाकों में गश्त करते हैं. जवानों के पास सीमित मात्रा में ही पीने का पानी होता है. क्योंकि वे हथियारों के अलावा भारी सामान अपने साथ लेकर नहीं जाते ताकि थकान ज्यादा ना हो. कई बार हमारे जवानों का पीने का पानी जंगल के अंदर ही खत्म हो जाता है.

पानी की समस्या का कैसे समाधान करते हैं जवान :सबसे पहले हमारे जवान किसी लकड़ी से ऐसे सूखे नालों की या गड्ढों की हल्की खुदाई करते हैं, जिसमें बरसात का पानी हो. यह काम भी इतना आसान नहीं होता. लेकिन बिना हार माने इस काम को हमारे जवान बखूबी अंजाम देते हैं. इन्हें जो पानी काफी मेहनत के बाद मिलता है, वह भी साफ नहीं होता. जवान गंदे पानी को बोतल में जमा करते हैं. जब बोतल में गंदा पानी नीचे दब जाता है, तब ऊपर का पानी पीकर ये जवान अपनी प्यास बुझाते हैं. सब इंस्पेक्टर मोरध्वज प्रधान कहते हैं कि 'गर्मी के दिनों में पानी एक बड़ी चुनौती रहती है. जंगलों में पुराने झरने होते हैं, जहां पर पानी नीचे जा चुका रहता है. उन जगहों को खोदकर पानी निकालने का प्रयास किया जाता है. उसके बाद ही उस पानी को साफ करके पीते हैं.'

छत्तीसगढ़ से खास रिपोर्ट

डिहाइड्रेशन की होती है समस्या
छत्तीसगढ़ के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट टी आई लक्ष्मण केवट कहते हैं कि, 'सुरक्षाबलों को सबसे ज्यादा परेशानी यह है कि गर्मी के दिनों में जवानों को सबसे ज्यादा पानी कैरी करना होता है. गर्मी ज्यादा होने की वजह से हम दिन में मूवमेंट नहीं करते. सुबह और शाम ही मूवमेंट करना उचित रहता है. साथ ही नक्सलियों का भी खतरा रहता है. ज्यादातर नक्सली घटनाएं गर्मी के समय में होती है. गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन की समस्या का सामना जवानों को करना पड़ता है.' गर्मी के मौसम में जिस तरह से मोहला मानपुर के सघन क्षेत्र के जवान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. ठीक उसी तरह नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के अन्य जवानों को भी जद्दोजहद करनी पड़ती है. कड़ी चुनौतियों के बावजूद भी हमारे जवान नक्सलियों से लोहा लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं.'

गर्मी के मौसम में नक्सल गतिविधियों में तेजी पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट
ETV भारत ने नक्सल मामलों के जानकार से भी चर्चा की है. नक्सल मामलों के जानकार भी मानते हैं कि नक्सली गर्मी में बड़ी हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं. नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा की मानें तो, 'गर्मी के मौसम में नक्सलियों के एक्टिव होने के कुछ प्रमुख कारण हैं. नक्सली पोजीशनल वार फेयर की अवस्था में आ चुके हैं. अब गुरिल्ला मैच्योर टैक्टिक्स का हिस्सा हो चुका है. ऐसे में निश्चित अवधि का चुनाव कर लेते हैं. इस अवधि में बैक टू बैक हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं. नक्सली इन हिंसक घटनाओं को अंजाम देकर यह साबित करना चाहते हैं कि यह अवधि एक प्रकार की दहशतगर्दी की अवधि है.' उन्होंने बताया कि इस दौरान तीन प्रमुख बातों पर नक्सली फोकस करते हैं.

  • पहला, लोगों के बीच भय का वातावरण निर्मित करना.
  • दूसरा, सरकार के सामने यह साबित करना चाहते हैं कि यदि हम शांति वार्ता की अपील कर रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि हम कमजोर हैं.
  • तीसरा, गर्मी का मौसम पतझड़ का मौसम होता है. नक्सली दूर से जवानों को देख लेते हैं. इसलिए गर्मी में नक्सल एनकाउंटर और नक्सल हमले की संख्या बढ़ जाती है.

गर्मी के मौसम में अब तक के बड़े नक्सली हमले

  • 23 मार्च 2021: नारायणपुर में नक्सलियों ने आईईडी से जवानों की बस को उड़ा दिया. 5 जवान शहीद हुए जबकि 10 घायल हुए.
  • 21 मार्च 2020: सुकमा के मिनपा हमले में 17 जवान शहीद हुए.
  • 28 अप्रैल 2019: बीजापुर जिले में नक्सलियों ने पुलिस जवानों पर हमला किया. 2 जवान शहीद हुए. एक ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हुआ.
  • 9 अप्रैल 2019: दंतेवाड़ा में लोकसभा चुनाव में मतदान से ठीक पहले नक्सलियों ने चुनाव प्रचार के लिए जा रहे भाजपा विधायक भीमा मंडावी की कार पर हमला किया. भीमा मंडावी के अलावा 4 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए.
  • 19 मार्च 2019: दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में उन्नाव के रहने वाले सीआरपीएफ जवान शशिकांत तिवारी शहीद हुए. घात लगाकर हुए हमले में 5 अन्य लोग भी घायल हुए.
  • 24 अप्रैल 2017: छत्तीसगढ़ के सुकमा में लंच करने बैठे जवानों पर घात लगाकर हमला हुआ. 25 से ज्यादा जवान शहीद हो गए.
  • 1 मार्च 2017: सुकमा जिले में अवरोध सड़कों को खाली कराने के काम में जुटे सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर हमला हुआ. 11 जवान शहीद हुए. 3 से ज्यादा जवान घायल हुए.
  • 11 मार्च 2014: झीरम घाटी के पास एक इलाके में नक्सलियों ने हमला किया. 15 जवान शहीद हुए. 1 ग्रामीण की भी मौत हुई.
  • 12 अप्रैल 2014: बीजापुर और दरभा घाटी में आईईडी ब्लास्ट में 5 जवानों समेत 14 लोगों की मौत हो गई थी. मृतकों में 7 मतदान कर्मी थे. सीआरपीएफ के 5 जवानों समेत एंबुलेंस चालक और कंपाउंडर की मौत हुई थी.
  • दिसंबर 2014: सुकमा के चिंता गुफा इलाके में एंटी नक्सल ऑपरेशन चल रहा था. सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला कर दिया. नक्सलियों के इस हमले में 14 जवान शहीद हो गए जबकि 12 घायल हुए.
  • 25 मई 2013: झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर दिया. कांग्रेस के 30 नेता और कार्यकर्ता की मौत हो गई. पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व विधायक महेंद्र कर्मा और उदय मुदलियार, दिनेश पटेल, योगेंद्र शर्मा सहित कई अन्य कांग्रेसी नेताओं की मौत हुई थी.
  • 29 जून 2010: नारायणपुर जिले के थोड़ा में सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला किया. इस हमले में पुलिस के 27 जवान शहीद हुए थे.
  • 17 मई 2010: दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे एक यात्री बस में सवार जवानों पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर हमला किया. 12 विशेष पुलिस अधिकारी सहित 36 लोग मारे गए थे.
  • 6 अप्रैल 2010: दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में सुरक्षाकर्मियों पर हमला हुआ. इसे देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला भी माना जाता है. इसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे.
  • 15 मार्च 2007: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पहली बार बीजापुर जिले के रानीबोदली कैंप पर हमला किया. हमले में 55 जवान शहीद हुए.

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