नई दिल्ली : इस महीने की शुरुआत में लिथुआनिया के विनियस में नाटो शिखर सम्मेलन ने सैन्य गठबंधन में एक महत्वपूर्ण मोड़ की शुरुआत हुई. यह भारत सहित दुनिया भर के देशों के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों पेश करता है. नाटो ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष के बीच अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. अब वह अपनी नजर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर जमा रहा है. यह क्षेत्रीय स्थिरता और भारत के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते पर लिहाज से महत्वपूर्ण है.
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से उत्पन्न संघर्ष कई मायनों में नाटो के लिए वरदान साबित हुआ है. गठबंधन ने स्थिति का फायदा उठाया है, नए सदस्यों को आकर्षित किया है और आंतरिक मतभेदों को दूर किया है. संकट के जवाब में राष्ट्र एकजुट हो रहे हैं. संघर्ष ने नए मोर्चे भी खुले हैं. यह मौका है जब नोटो संभावित रूप से अपनी भूमिका, प्रभाव और पहुंच बढ़ा सकता है.
नोटो को लेकर सकारात्मक रूख :नाटो का विस्तार पारंपरिक रूप से तटस्थ फिनलैंड को स्वीकार करने और स्वीडन पर तुर्की के रूख में बदलाव से स्पष्ट हो गया है. यह विस्तार गठबंधन के बढ़ते प्रभाव और जरूरत का संकेत देता है. वे देश भी जो पहले इसमें शामिल होने से झिझक रहे थे अब नोटो को लेकर सकारात्मक रूख अपना रहे हैं. रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा कर तुर्की ने आलोचनाओं के बावजूद नाटो के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत किया है.
विज्ञप्ति में चीन का 16 बार उल्लेख :इसके अतिरिक्त, इस संघर्ष ने जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों को अपने रक्षा बजट बढ़ाने, अधिक सहयोग को बढ़ावा देने और अमेरिका के साथ तनाव कम करने के लिए प्रेरित किया है. नाटो अपने पारंपरिक क्षेत्र यूरोप से बाहर निकल कर देख रहा है. उसने अपनी घोषणा में चीन पर चिंता व्यक्त की है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नाटो की नीतियों में संभावित बदलाव का संकेत है. लिथुआनिया में शिखर सम्मेलन के बाद जारी विज्ञप्ति में चीन का 16 बार उल्लेख किया गया है.
चीन पर सैन्य निर्माण में अपारदर्शी रहने का आरोप :नाटो विज्ञप्ति में कहा गया है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की घोषित महत्वाकांक्षाएं और विस्तारवादी नीतियां हमारे हितों, सुरक्षा और मूल्यों को चुनौती देती हैं. नोटो के बयान में कहा गया है कि पीआरसी अपनी रणनीति, इरादों और सैन्य निर्माण के बारे में अपारदर्शी रहते हुए, अपनी वैश्विक उपस्थिति और परियोजना शक्ति को बढ़ाने के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य उपकरणों की एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग कर रही है. पीआरसी के दुर्भावनापूर्ण हाइब्रिड और साइबर ऑपरेशन और इसकी टकरावपूर्ण बयानबाजी और दुष्प्रचार मित्र राष्ट्रों को निशाना बना रहे हैं और गठबंधन की सुरक्षा को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
नाटो की गतिविधियों पर चीन की नजर, जता चुका है आपत्ति :वास्तव में, अप्रैल 2022 की शुरुआत में, चीन ने इंडो-पैसिफिक में नाटो की बढ़ती दिलचस्पी पर आपत्ति जताई थी. चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के रिसर्च फेलो लू जियांग ने ग्लोबल टाइम्स में एक लेख में लिखा था. जिसमें उन्होंने रेखांकित किया था कि नाटो पिछले काफी समय से एशिया-प्रशांत मामलों में ज्यादा दिलस्चपी नहीं ले रहा था लेकिन हाल के वर्षों में, नाटो इस क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाने के साथ तथाकथित चीन के खतरे पर जोर दे रहा है. उन्होंने लिखा था कि एशिया-प्रशांत मामलों में नाटो की रुचि में अभूतपूर्व वृद्धि का मतलब है कि नाटो खुद को एक वैश्विक संगठन के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है.