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राष्ट्रीय युवा दिवस : युवा पीढ़ी के लिए क्यों खास हैं विवेकानंद

प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर यूथ अफेर्यस और स्पोर्टस मंत्रालय 24वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव (NYF) 2021 का आयोजन करेगा. वह भारत के प्रति बेहद देशभक्त थे और उन्हें भारत में दर्शन के योगदान के लिए नायक माना जाता है.

स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद

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Published : Jan 12, 2021, 6:00 AM IST

हैदराबाद : हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है. वह रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे और भारत में हिंदू धर्म के पुनरुत्थान करने वाले लोगों में शामिल थे. इस अवसर पर यूथ अफेर्यस और स्पोर्टस मंत्रालय 24वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव (NYF) 2021 का आयोजन करेगा.

उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन को पश्चिमी दुनिया से परिचित कराया. वह देशभक्त थे और उन्हें भारत में दर्शन के योगदान के लिए नायक माना जाता है.

उन्होंने भारत में व्यापक रूप से फैली गरीबी की ओर भी ध्यान आकर्षित किया और कहा कि देश के विकास के लिए गरीबी के मुद्दे को गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

स्वामी विवेकानंद का कथन है कि सारी शक्ति तुम्हारे भीतर है, तुम कुछ भी कर सकते हो. इस बात पर विश्वास करो, यह मत मानो कि तुम कमजोर हो, विश्वास न करें कि आप आधे पागल हैं, जैसा कि हम में से अधिकांश आजकल करते हैं. आप बिना किसी मार्गदर्शन के सब कुछ कर सकते हैं. खड़े हो जाओ और अपने भीतर की डिवाइन शक्ति को जाहिर करो.

स्वामी विवेकानंद (1863-1902)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था. उनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. 1893 में विवेकानंद शिकागो में विश्व धर्म संसद में बोलते हुए वेदांत दर्शन को पश्चिम में पेश किया और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया. इस धर्म संसद में भाषण देने के बाद वह विख्यात हो गए.

विवेकानंद 19वीं सदी के रहस्यवादी रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे, जिन्होंने मातृ भूमि के उत्थान के लिए शिक्षा पर सबसे अधिक जोर दिया. उन्होंने एक मानव-निर्मित चरित्र-निर्माण शिक्षा की वकालत की.

1897 में विवेकानंद रामकृष्ण मिशन से जुड़े. यह एक संगठन है, जो मूल्य-आधारित शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, युवा और आदिवासी कल्याण और राहत और पुनर्वास के क्षेत्र में काम करता है.

1902 में विवेकानंद का पश्चिम बंगाल स्थित बेलूर मठ में निधन हो गया. बेलूर रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है.

उनके कई योगदानों का सम्मान करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1984 में उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया. इस दिन देश के युवाओं से विवेकानंद के मूल्यों, सिद्धांतों और विश्वासों के बढ़ने की उम्मीद की जाती है.

स्वामी विवेकानंद का प्रेरक व्यक्तित्व उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक और बीसवीं सदी के पहले दशक के दौरान भारत और अमेरिका दोनों में प्रसिद्ध था.

1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद में भारत के एक अज्ञात भिक्षु ने अचानक ख्याति प्राप्त की. संसद में उन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था. पूर्वी और पश्चिमी संस्कृति के अपने विशाल ज्ञान के साथ-साथ उनकी गहरी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि, शानदार बातचीत, व्यापक मानवीय सहानुभूति, रंगीन व्यक्तित्व और सुंदर आकृति ने कई अमेरिकियों का आकर्षित किया. जिन लोगों ने विवेकानंद को देखा या सुना, वह आधी सदी से अधिक समय के बाद भी उनकी याद को संजोए हुए हैं.

विवेकानंद का देश के युवाओं के साथ एक विशेष संबंध था और इसलिए वह शैक्षिक सुधारों के मुद्दे के साथ निकटता से जुड़े थे.

उन्होंने लिखा कि शिक्षा से मेरा मतलब वर्तमान प्रणाली से नहीं है, लेकिन सकारात्मक शिक्षण से है, जो मात्र पुस्तक पढ़ने से ऐसा नहीं आती है, हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विस्तार हो और जिससे व्यक्ति स्वयं के पैरों पर खड़ा हो सके.

भारत एक युवा राष्ट्र के रूप में

भारत की आबादी दुनिया में सबसे कम उम्र की है. 2022 तक भारत में औसत आयु 28 वर्ष होगी, जबकि यह चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका में 37, पश्चिमी यूरोप में 45 और जापान में आयु 49 होगी. यह एक असाधारण अवसर है. जनसांख्यिकी लाभांश ने ऐतिहासिक अर्थव्यवस्थाओं में समग्र आर्थिक विकास में 15 फीसदी तक का योगदान दिया है.

कई एशियाई देशों जापान, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया और हाल ही में चीन ने लंबे समय तक तेजी से बढ़ने के लिए अपने देशों में जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाया था.

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युवाओं के लिए चुनौतियां

भारत को अपने जनसांख्यिकीय अवसर से तभी लाभ होगा जब नीतियां और कार्यक्रम इस जनसांख्यिकीय बदलाव से जुड़े होंगे.

जनसांख्यिकीय भाग्य नहीं है, यूनिसेफ 2019 की रिपोर्ट है कि 47 फीसदी भारतीय युवाओं के पास 2030 में रोजगार पाने के लिए उचित शिक्षा और कौशल नहीं होगा.

महामारी के बाद युवाओं को बेरोजगारी, शिक्षा में बाधाओं आदि जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

रोजगार के आंकड़े बताते हैं कि हमारे यहां बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है, यानी 15 से 29 प्रतिशत.

रोजगार और आर्थिक गतिविधियों पर महामारी के प्रभाव के साथ भारत पहले ही अपने जनसांख्यिकीय लाभांश उठाने में चूक गया है.

मौजूदा परिस्थितियां और युवाओं को स्वामी विवेकानंद का संदेश

देश का युवा हारा हुआ लगता है. वह राष्ट्र और मानवता के लिए अपने कर्तव्यों से मदहोश अपने सेल फोन पर 2GB डेटा के कोटा का उपयोग करने में व्यस्त है.

आज युवा असाधारण रूप से रिस्पोंसिव है और उन्हें बस प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. स्वामी विवेकानंद भारत के युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं. उनकी शिक्षाएं हमेशा प्रासंगिक रहेंगी.

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