हैदराबाद : चिकित्सकों के अनुसार बच्चे के जन्म के बाद के पहले 24 घंटे तथा शुरुआती 28 दिन काफी संवेदनशील होते हैं. इस दौरान शिशुओं के स्वास्थ्य को लेकर या उनकी देखभाल में की गई जरा सी अनदेखी या गलती उन्हे कई कम या ज्यादा गंभीर रोगों तथा संक्रमणों की जद में ला सकती है. जो कई बार उनके जीवन पर संकट का कारण भी बन सकती है. वहीं कई बार कुछ बच्चे समय पूर्व जन्म, जरूरी शारीरिक या मानसिक विकास ना होने, इंट्रापार्टम जटिलताओं या जन्मजात विकृतियों के कारण जन्म के बाद पहले माह में ही मृत्यु से हार जाते हैं. जानकार मानते हैं कि ऐसे कुछ मामलों में सही चिकित्सीय मदद तथा ज्यादा देखभाल से बच्चे को बचाया भी जा सकता है.
हर अवस्था में ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्वस्थ जीवन मिल सके इसके लिए नवजात शिशुओं की सही व जरूरी देखभाल की जरूरत व उसके तरीकों को लेकर आम लोगों में जागरूकता फैलाने तथा नवजात मृत्यु दर में कमी लाने के लिए हर संभव प्रयास करने के उद्देश्य के साथ हर साल 15 से 21 नवंबर तक राष्ट्रीय नवजात शिशु देखभाल सप्ताह मनाया जाता है. जिसके तहत देश भर में सरकारी तथा निजी स्तर पर कई जागरूकता कार्यक्रमों व अभियानों का आयोजन किया जाता है.
नवजात मृत्युदर से जुड़े आंकड़े
इसी वर्ष की शुरुआत में यूनाइटेड नेशन इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टिमेशन द्वारा जारी कुछ वैश्विक रिपोर्ट में नवजात बच्चों में मृत्यु से जुड़े कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे. जिनके अनुसार वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर पांच वर्ष से कम आयु के वाले 5 मिलियन बच्चों की अलग-अलग कारणों से जान गई थी. जिनमें लगभग 2.7 मिलियन बच्चे 1 से 59 माह की आयु वाले थे , जबकि शेष 2.3 मिलियन बच्चे ऐसे थे जिनकी जन्म के बाद पहले माह में ही मृत्यु हो गई. रिपोर्ट के अनुसार भारत में यह आंकड़ा लगभग 7 लाख था, जिनमें लगभग 5.8 लाख शिशु जन्म के बाद एक वर्ष से पहले ही मृत्यु का शिकार हो गए थे.
संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर उपलब्ध इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2021 में, प्रत्येक 4.4 सेकंड में एक नवजात शिशु या कम उम्र के बच्चे की मृत्यु हुई थी. इस रिपोर्ट में यह आशंका भी जताई गई थी कि यदि सभी महिलाओं व बच्चों को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हुईं, तो वर्ष 2030 तक लाखों अन्य शिशु अपनी जान गंवा सकते हैं.
वहीं देश के सरकारी आंकड़ों की माने तो वर्ष 2019 में दो मिलियन से अधिक स्टिल बर्थ या मृत जन्म के कारण तथा वैश्विक स्तर पर लगभग 2.4 मिलियन बच्चे शारीरिक या मानसिक विकास ना होने, गर्भ में या जन्म के बाद बीमारी, संक्रमण या कुछ अन्य कारणों के चलते जन्म के प्रथम माह में ही मृत्यु का शिकार हो गए थे .
गौरतलब है कि जन्म के बाद शुरुआती 28 दिन में अपरिपक्वता, बीमारी, संक्रमण या कुछ अन्य कारणों के चलते नवजात में मृत्यु का ज़ोखिम अधिक रहता है. हर साल दुनिया भर में इन तथा अन्य कारणों के चलते बड़ी संख्या में नवजात अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. सरकारी आंकड़ों की माने तो बच्चे के जन्म के पहले एक माह में जरूरी शारीरिक विकास ना होने या अपरिपक्वता के चलते 35%, नवजात बच्चों में अलग-अलग संक्रमण के चलते 33% , इंट्रापार्टम जटिलताओं, सांस रुकने या अस्फीक्सिया के चलते 20% तथा जन्मजात विकृतियों के कारण लगभग 9 % बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं.
कम हो रही है मृत्यु दर