भीलवाडा (राजस्थान). भारतीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन एनपी सिंह ने कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में भारतीय मूल्यों का अभाव है. हम पाश्चात्य दर्शन व पाश्चात्य विचार व जीवनशैली के उपभोक्ता बन कर रह गए. वर्तमान में पूरी शिक्षा पद्धति नौकरी परक हो गई है जिसमें कहीं पर भी किसी प्रकार के नेतृत्व करने की क्षमता नहीं है. वर्तमान शिक्षा पद्धति की वजह से ही मानव मनुष्य न होकर इकोनामिक पैकेज हो गए. बता दें कि योग गुरु स्वामी रामदेव के साथ भारतीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन एनपी सिंह भी राजस्थान के भीलवाड़ा जिले पहुंचे. वहां उन्होंने आज योग शिविर के अंतिम दिन योग अभ्यास भी किया. योग शिविर की समाप्ति के बाद भारतीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर अपनी स्पष्ट राय रखी.
जहां भारतीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन एनपी सिंह ने वर्तमान शिक्षा पद्धति में पाठ्यक्रम के चयन को लेकर कई लोग मांग भी कर रहे हैं. वर्तमान पाठ्यक्रम की कमियों पर कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति 1835 में मैकाले द्वारा लागू की गई थी. उसी के आधार पर ही निरंतर संचालित किया जा रहा है. स्वतंत्रता के बाद कुछ बदलाव जरूर हुए थे लेकिन जो रूपांतरण होना चाहिए वो नहीं हो पाई. वर्तमान में संस्कृत मुल्क भारत है उसमें अनेक शिक्षाविदों की मांग के साथ ही स्वामी रामदेव ने साल 2012 से तत्कालीन केंद्र सरकार मांग कर रहे थे. वो शिक्षा पद्धति में बदलाव की मांग को लेकर सदा मुखर रहे हैं. शिक्षा पद्धति में बच्चों को आधुनिक तकनीक की दक्षता का बोध हो. उसमें बच्चे बेहतर स्किल्ड वाले हों. वहीं बच्चों को प्राचीन ज्ञान, परंपरा व मूल्यों से भली भांति परिचित भी होना चाहिए. अगर हमारे पास अपनी सांस्कृतिक विरासतों का ज्ञान नहीं है हमें अपने इंडियन हेरिटेज वर्क कल्चर पर गर्व नहीं हैं तो स्वाभाविक रूप से देश का सफल नागरिक बन पाना संभव नहीं है. भारत सरकार ने वर्तमान में नई शिक्षा नीति लाई उसी के अनुरूप भारत सरकार ने भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन किया. जिसमें आधे सदस्य भारत सरकार द्वारा नामित हैं और शेष सदस्य स्वामी रामदेव द्वारा नामित हैं. इस बोर्ड का उद्देश्य है कि भारत बोध के साथ वैश्विक नागरिक बनने की दक्षता भारतीय छात्र छात्राओं में पैदा की जाए.