पटना:शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के निर्देश के बाद बीते डेढ़ महीने में प्रदेश के सरकारी विद्यालयों से कक्षा 1 से 12 तक के 21.90 लाख बच्चों के नामांकन रद्द कर दिए गए हैं. केके पाठक के निर्देश पर विद्यालयों में लगातार निरीक्षण कार्य चल रहा है और जो बच्चे 15 दिन से अधिक समय से विद्यालय से अनुपस्थित हैं, ऐसे बच्चों का नामांकन रद्द किया जा रहा है.
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बिहार के लगभग 22 लाख बच्चों का नामांकन रद्द: हालांकि इन बच्चों के लिए यह प्रावधान जरूर है कि अभिभावक जाकर विद्यालय में यदि शपथ पत्र देते हैं कि आगे से बच्चे विद्यालय से अनुपस्थित नहीं रहेंगे और विद्यालय को सूचना देकर अनुपस्थित होंगे तो उनका पुनः नामांकन भी हो रहा है. शिक्षा विभाग के निर्णय के बाद कई राजनीतिक दल सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं. शिक्षा के अधिकार के उल्लंघन की दुहाई दे रहे हैं.
क्या RTE का हो रहा उल्लंघन?: विशेषज्ञों का मानना है कि यह जो कुछ भी हो रहा है, शिक्षा के अधिकार के दायरे में हो रहा है और यह सही हो रहा है.एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर शिक्षाविद प्रोफेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि सरकार जो कुछ भी कर रही है, काफी सही कर रही है. शिक्षा का अधिकार कानून कहता है कि बच्चों की विद्यालय में उपस्थिति 75% होनी चाहिए और इसी को लेकर यह निर्णय लिया गया है.
"सरकारी विद्यालयों में सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के नाम पर काफी लूट मची हुई थी, जिसको इस निर्णय के माध्यम से नकेल कसा गया है. सरकारी विद्यालयों में काफी संख्या में ऐसे घोस्ट स्टूडेंट थे, जिनका विद्यालय में नामांकन तो है लेकिन वह बच्चे विद्यालय नहीं जाते हैं. घोस्ट स्टूडेंट्स का कोई अस्तित्व ही नहीं है."-प्रोफेसर बीएन प्रसाद,शिक्षाविद
अभिभावकों को देना होगा शपथ पत्र: प्रोफेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि आपने देखा होगा कि कम संख्या में ही अभिभावकों ने क्लेम किया कि उनके बच्चे का नामांकन कट गया है. जिन्होंने भी यह क्लेम किया उनके बच्चों का शपथ पत्र के साथ फिर से नामांकन किया गया है, लेकिन भारी संख्या में अभिभावकों ने क्लेम नहीं किया है. इसका मतलब साफ है कि उन छात्रों के नाम पर पैसे का घोटाला हो रहा था.
'नाम ना कटे इसके लिए करना होगा ये काम':उन्होंने आगे कहा कि जो उच्च माध्यमिक के बच्चे के साथ समस्या है, उस पर सरकार को भी संज्ञान लेना होगा. सरकार को विद्यालयों में ऐसा शैक्षणिक माहौल कायम करना होगा, जहां बच्चे कंपटीशन परीक्षा की भी तैयारी कर सकें. बच्चे स्कूल के बाद मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर सकें. इसके लिए स्कूल में ही प्रबंध करना होगा. ऐसा होगा तो सरकारी विद्यालयों से बच्चों का नाम कटने की बजाय काफी संख्या में बढ़ेगा.
घोस्ट स्टूडेंट्स का स्कूल में नामांकन: दरअसल शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक को जानकारी मिली कि बिहार के सरकारी स्कूलों में सरकार की ओर से चलाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कल्याणकारी योजनाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है. विद्यालयों में काफी ऐसे घोस्ट स्टूडेंट है जो वास्तव में है नहीं और उनका नामांकन विद्यालय में है.
सरकारी राशि का दुरुपयोग: ऐसे में इन बच्चों को चिह्नित करने और सरकारी राशि का हो रहे दुरुपयोग को नियंत्रित करने को लेकर केके पाठक ने 2 सितंबर को निर्देश जारी किया कि जो बच्चे 15 दिनों से अधिक समय से विद्यालय नहीं आ रहे हैं उनका नामांकन रद्द किया जाए. जिसके बाद से लगातार सरकारी विद्यालयों से नामांकन रद्द हो रहे हैं.