नैनीताल :कोरोना की तीसरी लहर के खतरे को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा (char dham yatra) शुरू करने की अनुमति नहीं दी है. कोर्ट ने कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट (supreme court) यात्रा को लेकर फैसला नहीं दे देता है, तब तक चारधाम यात्रा पर रोक जारी रहेगी.
आपको बता दें कि बुधवार को नैनीताल हाईकोर्ट में उत्तराखंड के कोविड अस्पतालों की बदहाल स्थिति और कोरोना काल में वापस लौटे प्रवासियों को बेहतर सुविधाएं देने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई है. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने चारधाम यात्रा पर 18 अगस्त तक रोक लगाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. इसीलिए जब तक सुप्रीम कोर्ट में चार धाम यात्रा के मामले पर सुनवाई होती, तब तक यात्रा पर रोक रहेगी.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि, राज्य सरकार की ओर से चार धाम यात्रा आयोजन के लिए ₹200 करोड़ का पैकेज जारी किया गया है. ऐसे में सरकार यात्रा शुरू करवा सकती है. हालांकि कोर्ट ने इसकी अनुमति नहीं दी.
कोर्ट ने कहा कि कोरोना के मद्देनजर सरकार पर्यटन स्थल और पर्यटकों के लिए निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन ठीक से नहीं कर रही है. कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई.
डेथ ऑडिट रिपोर्ट पर सवाल
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में कोरोना काल के दौरान जान गंवा चुके लोगों की डेथ ऑडिट रिपोर्ट पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कोर्ट को बताया कि सरकार ने डेथ ऑडिट रिपोर्ट में गड़बड़ी की है. इसीलिए उनकी दोबारा जांच होनी चाहिए. अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सरकार चार महीने में 23,324 लोगों की मौत दिखा रही है. वहीं दो साल में मात्र 7,500 लोगों की मौत हुई है. इसके स्पष्ट होता है कि सरकार की डेथ ऑडिट रिपोर्ट में बहुत गड़बड़ी है.
डेथ ऑडिट रिपोर्ट पर मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने डेथ ऑडिट रिपोर्ट पर अपना विस्तृत जवाब कोर्ट में पेश करने को कहा है. कोर्ट ने स्वास्थ्य निर्देशक को डेल्टा वेरिएंट के दौरान अब तक हुए टेस्ट रिपोर्ट को भी कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.
कोर्ट ने जताई नाराजगी
उत्तराखंड में अभी तक लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस की संख्या कम होने पर कोर्ट ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है. कोर्ट ने सरकार से कहा है कि उत्तराखंड में 94 ब्लॉक हैं. हर ब्लॉक में एक लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस होनी चाहिए. उत्तराखंड सरकार के पास अभी तक 54 एंबुलेंस मौजूद है. राज्य सरकार ने 41 एंबुलेंस के लिए प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार के पास भेजा है.
वैक्सीन पर सरकार को फटकार
कोर्ट ने उत्तराखंड में 18 से 45 साल की उम्र के लोगों के लिए वैक्सीन की कमी पर भी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए है कि जल्द से जल्द केंद्र सरकार से वैक्सीन मंगवाए, ताकि सभी लोगों को समय पर वैक्सीन लग सके. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले बताया था कि उनके पास चार करोड़ वैक्सीन मौजूद है. इसके बाद भी उत्तराखंड में लोगों को वैक्सीन क्यों नहीं लग पा रही है? कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित करें. इसके लिए राज्य सरकार अधिक प्रचार-प्रसार भी करें, ताकि लोगों को वैक्सीन लगाई जा सके.
कोर्ट ने अस्पतालों में खाली पदों पर किया सवाल
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार को अस्पतालों में रिक्त पड़े सभी पदों का विवरण पेश करने का कहा. कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि किन-किन पदों पर भर्ती प्रक्रिया अभी तक चल रही है और एंबुलेंस की क्या स्थिति है.
कोर्ट ने स्कूल खोलने का फैसला सरकार पर दिया
अधिवक्ता शिव भट्ट ने कोर्ट में दो अगस्त से स्कूल खोलने की बात भी कोर्ट में रखी. अधिवक्ता भट्ट ने कोर्ट में कहा कि राज्य सरकार आईसीएमआर की गाइड लाइन का उल्लंघन करते हुए भी कक्षा 6 से कक्षा 9 तक के स्कूलों को खोल रही है.आईसीएमआर की गाइड लाइन के अनुसार केवल प्राइमरी स्कूलों को खोला जा सकता है. इस पर कोर्ट ने स्कूल खोलने का फैसला राज्य सरकार के ऊपर छोड़ दिया. साथ ही कहा कि अगर भविष्य में जरूरत पड़ेगी तो कोर्ट इस मामले को संज्ञान लेगा.
बता दें कि उत्तराखंड में अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था और कोरोना काल में वापस लौटे प्रवासियों के बेहतर सुविधाओं को लेकर हल्द्वानी निवासी अधिवक्ता दुष्यंत मनाली व देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिस पर लगातार कोर्ट में सुनवाई चल रही है.
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