कोहिमा :नगालैंड शांति वार्ता के संदर्भ में अहम घटनाक्रम सामने आया है. नगा राजनीतिक समूहों ने कहा कि शांति वार्ता करने या न करने का फैसला केंद्र सरकार और नगा वार्ताकारों पर छोड़ देना चाहिए. नगालैंड सरकार ने नगा राजनीतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए सभी शीर्ष आदिवासी निकायों, नागरिक संस्थाओं, महिला और छात्र संगठनों, राजनीतिक दलों और सभी 60 विधायकों के साथ बुधवार को बैठक की. सभी पक्षों को नगालैंड में मुख्यमंत्री के आवासीय कार्यालय में प्रस्तावित परामर्श बैठक के लिए बुलाया गया.
इससे पहले एनएनपीजीडब्ल्यूसी ने अहम मुद्दों पर नागालैंड के आदिवासियों, नागरिक संस्थाओं और गैर-नगा स्वदेशी समुदायों की राय लेने के लिए राज्य सरकार की तारीफ की. उसने मंगलवार रात एक बयान जारी कर कहा कि स्थानीय शहरी निकाय चुनाव, सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ्स्पा) और नगालैंड पूर्ण शराब निषेध अधिनियम (एनएलटीपी) जैसे मुद्दे, जिन पर बैठक में चर्चा की जानी है, उन पर विचारों का व्यापक आदान-प्रदान बहुत अहम है.
नगा राजनीतिक मुद्दे पर एनएनपीजीडब्ल्यूसी ने राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि चूंकि भारत सरकार और नगा वार्ता समूहों ने 31 अक्टूबर 2019 को आधिकारिक तौर पर राजनीतिक वार्ता समाप्त कर ली है और नगा आदिवासियों ने घोषणा को स्वीकार कर लिया है, ऐसे में नगालैंड के सभी शीर्ष आदिवासी निकायों, पारंपरिक संस्थानों और नागरिक संस्थाओं ने समय-समय पर भारत सरकार से बिना किसी देरी के एक समावेशी समझौते पर हस्ताक्षर करने की मांग की है.
एनएनपीजीडब्ल्यूसी ने कहा कि इसके मद्देनजर नगा राजनीतिक मुद्दों पर उपरोक्त मानदंड से बाहर कोई भी वार्ता असंगत और अयोग्य होगी. उसने कहा, 'नगा राजनीतिक मुद्दों से जुड़ी वार्ता को भारत सरकार और नगा वार्ताकारों पर छोड़ देना सबसे उचित है, जिन्हें लोगों द्वारा जल्द से जल्द एक सम्मानजनक एवं स्वीकार्य राजनीतिक समाधान खोजने का अधिकार दिया गया है.'