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म्यांमार के सांसद चुन रहे मिजोरम का रास्ता, कई नेता और लोग पहुंचे आईजॉल

मददगार राज्य सरकार और मिजोस के साथ भ्रातृ-जातीय संबंधों की वजह से एनएलडी के राजनेताओं सहित हजारों की संख्या में सताए गए लोग म्यांमार से मिजोरम की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इसकी जानकारी दे रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ.

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Published : Apr 14, 2021, 4:20 PM IST

नई दिल्ली : बीते 1 फरवरी 2021 को म्यांमार में तख्तापलट करने के बाद जुंटा द्वारा क्रूर कार्रवाई शुरू की गई. जिसकी वजह से नागरिकों के अलावा म्यांमार के संसद सदस्य (सांसद), राजनेता, कई 'तातमाडाव' (म्यांमार सैन्य) के कर्मचारी, पुलिसकर्मी और उनके परिवार मिजोरम और उसकी राजधानी आइजॉल पहुंच रहे हैं. जो जनरल मिन आंग ह्लांग के नेतृत्व वाले जुंटा की कार्रवाई से बचने का रास्ता तलाश रहे हैं.

मिजोरम से राज्यसभा सांसद के वनमाला ने ईटीवी भारत को मिजोरम से फोन पर बताया कि अब तक लगभग 16 सांसदों ने प्रवेश किया है. जिनमें से अधिकांश चिन राज्य से चिन जातीयता के हैं. अन्य लोग मोन राज्य के पूर्वी प्रांत से हैं, कुछ मंडले से और कुछ अरकान से भी हैं. लेकिन हमें लगता है कि और अधिक लोग प्रवेश करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. वहीं म्यांमार के लोग अब रोजाना मिजोरम में प्रवेश कर रहे हैं.

आइजोल में स्थापित शरणार्थी शिविर में सांसदों, विधायकों, सेना के कर्मियों और पुलिस कर्मियों को रखा गया है. ज्यादातर नागरिक म्यांमार से सीमा पार करने के बाद भारतीय सीमा में लगभग 13 गांवों में फैले हुए अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं. सांसदों सहित आंग सान सू की के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक लीग (एनएलडी) के नेता भी हैं.

मिजोरम में भारी बहुमत और मणिपुर में कई लोग कूकी-मिजो जातीय समूह के हैं. जो पश्चिमी म्यांमार में सागांग राज्य में निवास करने वाले चिन लोगों के साथ सामान्य जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक और रिश्तेदारी संबंधों को साझा करते हैं. मिजोरम में म्यांमार के साथ 510 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है जो चम्फाई, सियाहा, लॉनग्टलाई, सेर्चिप, हनथियाल और सिटुआल जिलों में फैली हुई है.

टाडमाडव शुरू होने के बाद से अब तक करीब 2,200 से अधिक लोगों को मिजोरम में शरण दी गई है. म्यांमार में अधिकांश लोग जानते हैं कि सरकार और मिजोरम के लोग उनका स्वागत कर रहे हैं और इसीलिए उनमें से अधिकांश मिजोरम में आए हैं. उनकी मदद करने के लिए एनजीओ ने स्थानीय मिजो लोगों, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों और अन्य लोगों से फंड संग्रह अभियान शुरू करके करीब 30 लाख रुपये जुटाए हैं.

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इस बीच, अब तक करीब 700 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. मृतकों में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता, शासन-विरोधी प्रदर्शनकारी और अन्य नागरिक शामिल हैं. मृतकों में टाटमाडव और काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए), करेन नेशनल यूनियन (केएनयू), तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी (सहित) के विभिन्न विद्रोही जातीय समूहों के बीच चल रहे भीषण गृह-युद्ध में मारे गए लोग शामिल नहीं हैं.

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