नई दिल्ली : म्यांमार में आंग सांग सू ची की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करने और सेना के सत्ता अपने हाथ में लेने के विरोध में रविवार को भी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे. देश में निर्वाचित नेता आंग सान सू की की रिहाई की मांग को लेकर सभी आयु वर्ग के लोगों विरोध प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं, लेकिन सेना ने कार्रवाई की धमकी देते हुए चेतावनी जारी की है.
म्यांमार संकट को लेकर पूर्व राजदूत और उप सचिव (म्यांमार) जितेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि म्यांमार में सैन्य तख्तापलट पर भारत का रुख यह होना चाहिए या यह होगा कि 'यह म्यांमार की आंतरिक समस्या है.'
त्रिपाठी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बात की जाए तो अधिकांश पश्चिमी देश मानवाधिकार के रवैये से निर्देशित हैं. वह म्यांमार में हुए तख्तापलट के खिलाफ हैं. उनका कहना है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है. लोकतंत्र के साथ समझौता किया गया है.
त्रिपाठी ने कहा कि तख्तापलट हुआ है इसलिए वह इसका विरोध करेंगे. लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक बात भूल जाता है कि म्यांमार में सैन्य तानाशाही के 50 से अधिक वर्ष (1962-2012) हुए थे उसके बाद चुनाव हुआ और आंग सान सू की लगभग 66% मतों से जीतीं और इस बार भी लगभग 85% मतों के साथ वह सत्ता में आईं.
इसका यह मतलब नहीं है कि 50 साल के सैन्य तख्तापलट के दौरान किसी भी देश ने म्यांमार के साथ संबंध नहीं बनाए. 20 देशों ने म्यांमार के साथ 50 वर्षों तक संबंध बनाए रखे. इसलिए इस बार म्यांमार में कुछ भी बहुत अजीब नहीं हुआ क्योंकि सैन्य शासन म्यांमार के खून में है.
'हमें अपने पड़ोसी की मदद की जरूरत'
उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय खुद को मानवाधिकार का चैंपियन मानता है. भारत की बात करें तो हमारी स्थिति पश्चिमी शक्तियों से भिन्न है. पश्चिमी ताकतें म्यांमार से अलग हैं. म्यांमार हमारा पड़ोसी है और शायद भारत चीन और बांग्लादेश के बाद म्यांमार के साथ तीसरी सबसे बड़ी सीमा साझा करता है. एक और बात जो भारत को म्यांमार से चाहिए वह यह है कि पूर्वी सीमाओं के बजाय हमारी पूर्वोत्तर सीमाओं को सुरक्षित किया जाए. पूर्वोत्तर के कुछ राज्य उग्रवाद गतिविधियों से प्रभावित हैं और इस पर अंकुश लगाने के लिए हमें अपने पड़ोसी म्यांमार की मदद की जरूरत है.'
उन्होंने कहा, सैन्य शासन के बावजूद म्यांमार ने भारतीय सेना को अपनी सीमा पार करने और विद्रोही ठिकानों को खत्म करने की अनुमति दी. यह भारत के लिए बड़ा फायदेमंद साबित हुआ.
त्रिपाठी ने कहा कि म्यांमार में सैन्य तख्तापलट पर भारत का रुख यह होना चाहिए या यह होगा कि 'यह म्यांमार की आंतरिक समस्या है.' उन्होंने कहा कि म्यांमार के लोगों को तय करने दें कि उनके लिए क्या फायदेमंद है और देश और उसके लोगों को शांतिपूर्ण तरीकों से इसे तय करने दें.
म्यांमार की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर त्रिपाठी ने कहा कि म्यांमार की अर्थव्यवस्था काफी समय से सही स्थिति में नहीं थी. न सिर्फ अब बल्कि सैन्य शासन के दौरान और आंशिक रूप से लोकतांत्रिक शासन के दौरान भी अर्थव्यवस्था बेहतर नहीं थी. म्यांमार समृद्ध खनिज संसाधनों का भंडार है लेकिन इसे लोगों के लाभ के लिए उपयोग नहीं किया गया.