नई दिल्ली :यह कोई अचानक हुई घटना नहीं है, बल्कि पिछले सात दशकों से लगातार उग्र हिंसा को देखा जा रहा है. एक फरवरी 2021 को जुंटा द्वारा सैन्य तख्तापलट ने लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है. जो मौजूदा जातीय सशस्त्र संगठनों (ईएओ) की भीड़ में शामिल हैं.
स्थानीय लोगों की खबरों के अनुसार सैन्य जुंटा से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में युवा बंदूक उठा रहे हैं. इसने लोगों को खुद के लिए सैनिक के रूप से संगठित करना आसान बना दिया है. जहां पिछले सात दशकों से विद्रोहियों की उपस्थिति है. अधिकांश प्रमुख जातीय समूह एक एथनिक आर्म्ड ऑर्गनाइजेशन (ईएओ) द्वारा दर्शाए जाते हैं जो बर्मन बहुल ततमादव (म्यांमार सेना) से लड़ते हैं. इन समूहों ने अपने आत्म निर्णय और पूर्ण स्वतंत्रता से लेकर स्वायत्तता तक की मांगों को जातीय खेमों के साथ जोड़ दिया है.
सैन्य सेवा के लिए तैयार युवा
गुरुवार को ततमादव' से जुड़ी दमनकारी हिंसा भारतीय सीमा तक पहुंच गई. जब सागिंग क्षेत्र के तमू टाउनशिप में पुलिस चौकी पर हमले के दौरान छह पुलिस अधिकारी मारे गए. जबकि म्यांमार में राजनीतिक रूप से प्रमुख समुदाय बरमार (बर्मन) हैं. वहीं विद्रोही संगठन देशभर में पाए जाते हैं. इन विद्रोही समूहों में से कुछ अरकानी, शान, कायन्स, काचिन, राखीन, चिन, रोहिंग्या और वा समुदाय हैं, जो किसी भी समय सैन्य सेवा के लिए स्वयं सेवकों की फौज तैयार करते हैं.
हर गांव से 10-20 युवाओं की मांग
ईटीवी भारत ने 19 मार्च को बताया था कि म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन पाइयिंगुंग्सु हुलुटाव (CRPH) की अगुवाई में देशभर के प्रत्येक गांव से 10-20 सक्षम पुरुषों की सैन्य सेवा मांगी गई है. ततमादव' का मुकाबला करने के लिए एक संघीय सेना बनाने का लक्ष्य तय किया गया है. मिजोरम और मणिपुर में भारत-म्यांमार अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पुलिसकर्मियों, फायरमैन, छात्रों, सरकारी कर्मचारियों आदि सहित हजारों लोकतंत्र समर्थक और कार्यकर्ता समाज के अलग-अलग हिस्से तक फैल चुके हैं.