पटना : बिहार में छठ पूजा का इंतजार दीपावली की सुबह से शुरू हो जाता है. लोग छठ घाटों की सफाई में मशगुल रहते हैं. चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व की शुरूआत 17 नवंबर को खरना से होगी तो वहीं उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर 20 नवंबर की सुबह इस महापर्व का समापन हो जाएगा. छठ पूजा में प्रसाद का बड़ा ही महत्व है.
'यूं ही नहीं छठ का चूल्हा बन जाता है..': इस महाप्रसाद को बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस चूल्हे पर ये महाप्रसाद बनाया जाता है उसे कैसे और कौन बनाता है? नहीं जानते हैं तो हम आपको आज सबकुछ बताएंगे. ये भी बताएंगे की मिट्टी के चूल्हे के पीछे एक बहुत बड़ी परंपरा का निर्वहन कैसे होता आ रहा है. इस परंपरा के रास्ते में धर्म भी राह नहीं अटकाता. बल्कि बड़े ही आदर भाव से व्रती उनसे चूल्हा खरीदकर घर ले जाते हैं.
''20 से 30 साल से हम लोग इस चूल्हे का निर्माण कर रहे हैं और इसकी बिक्री भी खूब होती है. इस बार मिट्टी की खरीद ज्यादा पैसे में किया है. इसीलिए चूल्हे को जायदा दाम में हम लोग बेच रहे हैं. खरीदारों की कमी नहीं है. लगातार लोग आ रहे हैं और खरीद रहे हैं. छठ महापर्व है और इसको लेकर हम लोगों की भी उतनी आस्था है, जितना कि हिंदू धर्म के लोग रखते हैं. बड़ी निष्ठा भाव से इस चूल्हे को बनाना होता है.''- बेबी खातून, चूल्हा बनाती मुस्लिम महिला
मुस्लिम महिलाएं बनाती हैं छठ का चूल्हा: घर-घर जिस चूल्हे पर महाप्रसाद खुदबुदाता है, उस चूल्हे को कोई और नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाएं बनातीं हैं. जितना बड़ा त्योहार है उतनी ही बड़ी इस त्योहार को मानने वालों की आस्था भी है. पटना की बेबी खातून जैसी कई महिलाएं गांव से मिट्टी खरीदकर लातीं हैं और पटना की सड़कों पर मिट्टी को चूल्हे का आकार देने में जुट जाती हैं. इस चूल्हे को बनाने के दौरान सभी महिलाएं नियम और निष्ठा का पूरा निर्वहन एक व्रती महिला की तरह ही करती हैं. यूं समझिए कि जब तक चूल्हे का काम चलता है. लहसुन प्याज का सेवन भी इन महिलाओं द्वारा नहीं किया जाता है.