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मुस्लिम समुदाय ने प्रशासन से की मांग, शिरडी में साईं मंदिर में लाउडस्पीकर बंद न करें

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Published : May 5, 2022, 1:13 PM IST

शिरडी जामा मस्जिद ट्रस्ट और मुस्लिम समुदाय ने जिला प्रशासन से अपील की कि शिरडी साईं मंदिर में आरती के समय को बंद ना कराया जाए. जामा मस्जिद ट्रस्ट की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि पिछले कई वर्षों के इतिहास में पहली बार साईं नगरी में लोगों ने आरती नहीं सुनी. यह बहुत दर्दनाक है.

मुस्लिम समुदाय ने प्रशासन से की मांग
मुस्लिम समुदाय ने प्रशासन से की मांग

शिरडी (अहमदनगर) : महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर को लेकर चल रहे विवाद के बीच बुधवार को शिरडी साईं मंदिर में बिना लाउडस्पीकर बजाए ही कांकड़ आरती की गई. ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है कि बिना लाउडस्पीकर के मंदिर में रात और सुबह की आरती हुई. इसके बाद गुरुवार को जामा मस्जिद ट्रस्ट और मुस्लिम समुदाय ने जिला प्रशासन से अपील की कि शिरडी साईं मंदिर में आरती के समय को बंद ना कराया जाए. जामा मस्जिद ट्रस्ट की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि पिछले कई वर्षों के इतिहास में पहली बार साईं नगरी में लोगों ने आरती नहीं सुनी. यह बहुत दर्दनाक है.

पढ़ें:शिरडी : साईं बाबा मंदिर में पहली बार बिना लाउडस्पीकर बजाए हुई कांकड़ आरती

साईं बाबा देवस्थान विश्व प्रसिद्धि और अंतरधार्मिक सद्भाव के प्रतीक हैं. हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हरे और भगवा झंडे पिछले 1500 वर्षों से साईं बाबा की द्वारकामाई मस्जिद में एक साथ फहराए गए हैं. रामनवमी उत्सव के साथ-साथ चंदन का जुलूस भी होता है. हर सुबह 10 बजे साईं समाधि पर हिंदू और मुसलमान एक साथ बैठते हैं. किसी तरह कि कट्टरता से यहां की हिंदू-मुस्लिम एकता को कलंकित करना ठीक नहीं है. देश-विदेश से भक्त शिरडी आते हैं. हजारों नागरिकों की आजीविका मंदिर पर निर्भर है. इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर के लाउडस्पीकरों को बिना बंद किए चालू रखना चाहिए और इसे एक विशेष मामले के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए.

इससे पहले इस बारे में शिरडी पुलिस स्टेशन के पुलिस निरीक्षक गुलाबराव पाटिल ने बताया कि मंदिर के अलावा अजान के लिए भी लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं किया गया. बता दें कि साईं मंदिर में साईं समाधि में दर्शन के लिए भक्त सुबह 10 बजे एकत्र होते है और समाधि पर फूल चढ़ाते हैं. साईं समाधि में मुसलमान और हिंदुओं के द्वारा फूलों को चढ़ाने के साथ ही प्रार्थना करने की परंपरा सौ वर्षों से अधिक समय से चली आ रही है. वहीं मंदिर में आज भी सभी धर्मों के भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

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