नई दिल्ली :बहुत से लोग नहीं जानते दिल्ली के तीन मूर्ति भवन का नाम 1922 में तीन सैनिकों के स्मारक के नाम पर रखा गया था. एक जमाने में ये भारत में ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ का निवास था. इमारत के विशाल द्वार के सामने चरणबद्ध तरीके से लगे पेड़ गर्मी में राहत देते थे. परिसर में एक कैंटीन थी जो अविश्वसनीय रूप से कम कीमतों पर 'पूरी-सब्जी' परोसती थी. इतना ही नहीं, स्नैक्स के मूड में लोगों के लिए 'समोसा' और 'गुलाब जामुन' या यहां तक कि 'थाली' भी परोसती थी. मनोरम दक्षिण भारतीय व्यंजन के साथ यहां 'चाउमीन' भी मिलता था.
छात्र-विद्वान शिक्षाविदों से लेकर नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी में पास के कार्यालयों के सरकारी कर्मचारी भी यहां के नियमित ग्राहक थे. लेकिन गुरुवार (14 अप्रैल) को एडविन लुटियन की दिल्ली के केंद्र में विशाल परिसर के भीतर विशाल प्रधानमंत्री संग्रहालय के उद्घाटन के साथ परिसर अब पहले से कहीं अधिक भारत की समन्वित संस्कृति का प्रतिनिधि बन गया है. 14 अप्रैल को भारत में नागरिक अधिकारों के प्रमुख समर्थक बीआर अंबेडकर की जयंती भी मनाई जाती है. इसी दिन इसका उद्घाटन नेहरूवादी युग के बाद के औपनिवेशिक अतीत को तोड़ने का सरकार का स्पष्ट प्रयास है.
भारत के 14 प्रधानमंत्रियों को समर्पित संग्रहालय वाला तीन मूर्ति (Teen Murthi) परिसर भारत के राजनीतिक नेतृत्व का प्रतिनिधि बन गया है. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पर्यायवाची नाम के रूप में प्रसिद्ध तीन मूर्ति अब सभी भारतीय प्रधानमंत्रियों के जीवन और समय की सराहना करने की यात्रा होगी. इनमें से कई ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों और अपार बाधाओं के खिलाफ संघर्ष किया था, इसका प्रमुख उदाहरण लाल बहादुर शास्त्री हैं.