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जमानत की तरह ही अग्रिम जमानत का फैसला भी न्यायिक विवेक से किया जाना चाहिए : SC - घोषित अपराधी की अग्रिम जमानत रद्द SC

सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 364 के तहत आरोप का सामना कर रहे एक घोषित अपराधी को उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को खारिज करते हुए कहा है कि जमानत की तरह, अग्रिम जमानत देने का फैसला भी न्यायिक विवेक से लेना चाहिए. ईटीवी भारत के लिए सुमित सक्सेना की रिपोर्ट...

Supreme Court junks Haryana HC order
प्रतिकात्मक तस्वीर

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 2, 2023, 2:27 PM IST

नई दिल्ली :धारा 364 के तहत आरोप का सामना कर रहे एक घोषित अपराधी को उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. 29 अगस्त को इस मामले में सुनवाई हुई थी. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत की तरह, अग्रिम जमानत देने में भी न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि अदालत को इस बात का संज्ञान है कि स्वतंत्रता में आसानी से हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए, खासकर तब जब उच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी पूर्व जमानत का आदेश पहले ही दे दिया हो.

शीर्ष अदालत का फैसला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ हरियाणा सरकार की अपील पर आया, जिसमें दिसंबर 2021 में प्रतिवादी को जमानत दी गई थी. प्रतिवादी पर 31 जुलाई, 2020 को दर्ज एफआईआर में आईपीसी की धारा 364 सहित विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाया गया है. राज्य सरकार ने कहा कि प्रतिवादी को घोषित अपराधी है.

सीआरपीसी की धारा 438 के तहत छूट देना गलत और अनुचित था. यह प्रस्तुत किया गया कि उनकी संलिप्तता दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं और इसके अलावा, इसी आदेश के आधार पर, अन्य सह-अभियुक्तों को अग्रिम जमानत का लाभ दिया गया है, जो व्यापक सार्वजनिक हित में नहीं है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रतिवादी को अग्रिम जमानत देने का विवादित आदेश खारिज किया जाता है. प्रतिवादी को आज से चार सप्ताह के भीतर संबंधित न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा. हालांकि वह नियमित जमानत की मांग कर सकता है. जिसपर संबंधित अदालत वर्तमान निर्णय से प्रभावित हुए बिना अपनी योग्यता के आधार पर विचार करेगी.

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से असहमति जताई कि प्रतिवादी जो कि एक घोषित अपराधी है 'सुधार' का हकदार है. पीठ ने कहा कि जमानत की तरह, अग्रिम जमानत देने का प्रयोग न्यायिक विवेक के साथ किया जाना चाहिए. इस न्यायालय द्वारा अपनी घोषणाओं के माध्यम से दर्शाए गए कारक उदाहरणात्मक हैं, संपूर्ण नहीं. निस्संदेह, प्रत्येक मामले का भाग्य उसके अपने तथ्यों और गुणों पर निर्भर करता है.

पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार, एचसी के लिए प्रतिवादी को अग्रिम जमानत देना उचित नहीं था. पीठ ने धर्मराज को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करते हुए कहा कि तथ्यात्मक चश्मे से देखने पर, हम स्पष्ट हैं कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत प्रतिवादी के आवेदन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए था, क्योंकि वह एक घोषित अपराधी था.

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