नई दिल्ली :धारा 364 के तहत आरोप का सामना कर रहे एक घोषित अपराधी को उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. 29 अगस्त को इस मामले में सुनवाई हुई थी. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत की तरह, अग्रिम जमानत देने में भी न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि अदालत को इस बात का संज्ञान है कि स्वतंत्रता में आसानी से हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए, खासकर तब जब उच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी पूर्व जमानत का आदेश पहले ही दे दिया हो.
शीर्ष अदालत का फैसला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ हरियाणा सरकार की अपील पर आया, जिसमें दिसंबर 2021 में प्रतिवादी को जमानत दी गई थी. प्रतिवादी पर 31 जुलाई, 2020 को दर्ज एफआईआर में आईपीसी की धारा 364 सहित विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाया गया है. राज्य सरकार ने कहा कि प्रतिवादी को घोषित अपराधी है.
सीआरपीसी की धारा 438 के तहत छूट देना गलत और अनुचित था. यह प्रस्तुत किया गया कि उनकी संलिप्तता दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं और इसके अलावा, इसी आदेश के आधार पर, अन्य सह-अभियुक्तों को अग्रिम जमानत का लाभ दिया गया है, जो व्यापक सार्वजनिक हित में नहीं है.