शहडोल। मध्य प्रदेश का विंध्य क्षेत्र इन दिनों सुर्खियों में है, वजह है यह क्षेत्र आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने में बड़ा रोल अदा करेगा. ऐसे में बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियां क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही हैं. अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शहडोल दौरे पर रहे, और अब 8 अगस्त को कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी शहडोल जिले के ब्यौहारी दौरे पर आएंगे. जहां एक विशाल जनसभा को संबोधित करेंगे. ऐसे में सवाल यही है कि अपने इस दौरे के साथ ही विंध्य में क्या कांग्रेस का सीन बदल पाएंगे राहुल गांधी, क्योंकि कांग्रेस के लिए भी विंध्य अब एक बड़ी चुनौती बन चुका है.
चुनाव में विंध्य का बड़ा रोल:मध्य प्रदेश में चुनावी साल में सियासी पारा गर्म होना शुरू हो चुका है. लगातार बारिश होने के बाद भले ही तापमान में गिरावट देखने को मिली, लेकिन मध्यप्रदेश में सियासी पारा दिन प्रतिदिन चढ़ता ही जा रहा है. बीजेपी हो या फिर कांग्रेस सभी पार्टियां चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर चुकी हैं. पार्टी के दिग्गज नेता प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं, विंध्य क्षेत्र में सभी पार्टियों की नजर है, विंध्य मध्यप्रदेश का पांचवा सबसे बड़ा क्षेत्र है. इस क्षेत्र में राज्य की 30 विधानसभा सीटें आती हैं, और जब से विंध्य प्रदेश खत्म हुआ है और मध्य प्रदेश बना है तब से विंध्य राजनीति का बड़ा केंद्र बना हुआ है.
विंध्य के राजनैतिक नक्शे से गायब होती कांग्रेस:विंध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश की राजनीति का अहम क्षेत्र माना जाता है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश में अगर किसी भी पार्टी को सत्ता की चाबी हासिल करनी है, तो विंध्य में अपना दबदबा बनाना होगा. लेकिन पिछले 20 सालों से इस क्षेत्र में नजर डालें तो विंध्य के राजनैतिक नक्शे से कांग्रेस धीरे-धीरे गायब होती जा रही है, इसीलिए विंध्य कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन गया है.
एक दौर था जब विंध्य में कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन साल दर साल कांग्रेस किस तरह से विंध्य में कमजोर होता गया और बीजेपी के लिए विंध्य क्षेत्र कैसे उसका गढ़ बन गया इसे ऐसे समझा जा सकता है.
- - कांग्रेस की कमजोर कड़ी विन्ध्य में 20 साल में 4 चुनाव हुए. जिसमें 12 से अधितकम सीटें कांग्रेस पार्टी की नहीं आईं और पिछले 20 साल से कांग्रेस के लिए विंध्य एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.
- - विंध्य में साल 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 4 सीटें मिली थीं, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 18 सीटों पर जीत मिली थी. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी अपने प्रदर्शन से सबको चौंकाया था और सपा के 3 प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
- - साल 2008 के विधानसभा चुनाव में विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस की सीटों की संख्या और घट गई और यहां तो कांग्रेस का और भी खराब प्रदर्शन रहा. महज 2 सीट ही कांग्रेस विंध्य क्षेत्र में जीत सकी. 2008 में कांग्रेस को किस तरह से विंध्य में करारी हार मिली, इसे ऐसे समझ सकते हैं, इस चुनाव में कांग्रेस को मात्र 2 सीटें मिली थीं, लेकिन कांग्रेस से ज्यादा तो इस चुनाव में बसपा को सीटें मिल गई. बसपा के 3 प्रत्याशियों ने विंध्य में इस चुनाव में जीत हासिल की थी, और विंध्य में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी.
- - 2013 के विधानसभा चुनाव में विंध्य में हालांकि कांग्रेस ने वापसी करने की कोशिश की, 30 सीट में 12 सीट जीतने में कामयाब रही और बीजेपी ने 16 सीट जीतीं. पिछले 20 साल में इसी साल कांग्रेस ने इतनी सीट जीती थीं.
- - 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता की चाबी तो हासिल कर ली लेकिन विंध्य में यहां भी कांग्रेस की स्थिति और खराब रही. 2018 में 30 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को महज 6 सीटें ही मिली, जबकि बीजेपी ने 24 सीट में जीत हासिल की.
विंध्य में जीत क्यों जरूरी?विंध्य में किसी भी पार्टी के लिए अपना दबदबा बनाना कितना जरूरी है और क्यों प्रदेश में सरकार बनाने की चाबी यहीं से होकर जाती है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि, साल 2003 के विधानसभा चुनाव में 10 साल बाद भाजपा ने जब सत्ता हासिल की तो इसमें विंध्य का बड़ा योगदान था. विंध्य क्षेत्र में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था, और पार्टी ने 28 सीटों में से 18 सीटों पर कब्जा किया था. वहीं कांग्रेस की बात करें तो यहां सिर्फ 4 सीटें मिली थी. साथ ही समाजवादी पार्टी के 3 प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2003 से ही बीजेपी सत्ता में वापस आई, और फिर विंध्य को अपना गढ़ बना लिया. विंध्य में बीजेपी अब एक अभेद्य किला बनी हुई है, जो कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती हो गई है.