छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस का पहला बैच बगैर प्रैक्टिकल किए अब केवल थ्योरीटिकल पढ़ाई के सहारे डॉक्टर बनने को तैयार है. मुश्किल ये है कि इन मेडिकल छात्रों को प्रैक्टिकल के लिए ह्यूमन बॉडी ही नहीं मिल पाई, इसलिए प्रैक्टिकल के बगैर ही डॉक्टर बन गए.
पास होने की कगार पर पहला बैच:छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज की शुरुआत 2019 से हुई, इसके बाद में इसका नाम बदलकर छिंदवाड़ा इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज यानि सिम्स कर दिया गया. इस मेडिकल कॉलेज में हर साल 100 बच्चों का एडमिशन होता है, अबतक 400 मेडिकल स्टूडेंट का एडमिशन यहां हो चुका है, जिसके चलते पहला बैच अब पासआउट होने वाला है.
पहले बैच के सामने प्रैक्टिकल की समस्या:सफल डॉक्टर बनने के लिए ह्यूमन बॉडी की आवश्यकता होती है, ह्यूमन बॉडी की सर्जरी और उसके आंतरिक अंगों से मेडिकल स्टूडेंट को प्रैक्टिकल कराकर सफल डॉक्टर बनाया जाता है. लेकिन छिंदवाड़ा इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज में ह्यूमन बॉडी की कमी के चलते पहला बैच बिना प्रैक्टिकल के ही अपनी पढ़ाई पूरी करते नजर आ रहा है.
अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे मेडिकल स्टूडेंटों ने ईटीवी भारत को बताया कि "ह्यूमन बॉडी पर प्रैक्टिकल नहीं करने से हमें समस्याओं का सामना करना पड़ा है, क्योंकि मेडिकल कॉलेज में ओपीडी भी संचालित नहीं होती है. पोस्टमार्टम तक अगर होता है तो उसके लिए छिंदवाड़ा जिला अस्पताल में जाना होता है."
रिटायर्ड बैंक कर्मचारी का शव मिला था दान:1 अगस्त से छिंदवाड़ा इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज का सत्र प्रारंभ हुआ था, इसी दौरान वार्ड नंबर 2, फ्रेंड्स कॉलोनी निवासी रिटायर्ड बैंक कैशियर सत्य प्रकाश शुक्ला का छत्तीसगढ़ में अपनी बेटी के घर निधन हो गया था. सत्य प्रकाश शुक्ला का शव छिंदवाड़ा में उनके निवास पर लाया गया, जिसके बाद उनकी पत्नी सुधा शुक्ला ने परिजनों को पति की अंतिम इच्छा बताते हुए शव को मेडिकल कॉलेज में दान कर दिया था. मेडिकल के छात्रों ने बताया कि "जब कॉलेज को शव दान में मिला था तब मेडिकल कॉलेज में शव को सुरक्षित रखने की भी व्यवस्था नहीं थी, इसलिए मेडिकल के छात्रों ने प्रैक्टिकल नहीं कर पाया."