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माधवराव के फैसले पर ज्योतिरादित्य को ऐतराज!, ओवर ब्रिज की जमीन पर जता रहे हक, मांगा करोड़ों का हर्जाना

मध्यप्रदेश में आए दिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के जमीन से जुड़े मुद्दे चर्चाओं में बने रहते हैं. वहीं इस बार जिस जमीन को सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया ने स्वीकृत कर उस पर बने ओवरब्रिज का उद्घाटन किया. अब उस जमीन पर सिंधिया अपना हक बताकर करोड़ों का हर्जाना मांग रहे हैं.

Jyotiraditya Scindia land dispute
जमीनी सियासत

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Published : May 16, 2023, 5:39 PM IST

ग्वालियर ओवर ब्रिज की जमीन पर सियासत

ग्वालियर। मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले इन दिनों सिंधिया परिवार के द्वारा जमीन से जुड़े मामले काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं. ग्वालियर में एक के बाद एक सिंधिया परिवार द्वारा जमीनों पर अपना हक बताने के मामले सामने आ रहे हैं. ऐसा ही एक मामला इन दिनों काफी चर्चा में है. कांग्रेस का आरोप है कि जिस ओवरब्रिज को सिंधिया परिवार के मुखिया रहे माधवराव सिंधिया ने स्वीकृत किया और केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए उसे बनवाया और उसका उद्घाटन किया. अब उन्हीं के वंशज यानी उनके बेटे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया उसे अपनी जमीन बताते हुए करोड़ों रुपए का हर्जाना मांग रहे हैं. अब इस मामले को लेकर खूब सियासत हो रही है.

क्या है यह पूरा मामला: ग्वालियर शहर के बीचोबीच तीन दशक पहले बने एजी ऑफिस पुल पर सिंधिया ट्रस्ट ने अपना हक जताया है. उन्होंने दावा किया है कि एजी ऑफिस ओवरब्रिज जिस जमीन पर बना है, वह जमीन कमला राजे चैरिटेबल ट्रस्ट की है. सिंधिया परिवार का यह ट्रस्ट इसके बदले शासन से करीब सात करोड़ मुआवजा मांग रहा है. हालांकि शासन ने अपने जवाब में कहा है कि पुल सरकारी जमीन पर बना है और इसको लेकर राजस्व विभाग के अधिकारियों ने 1950 के खसरे भी पेश किया है. जिसमें जमीन सरकारी बताई गई है.

सिंधिया, पत्नी बेटे सहित अन्य लोगों को बनाया पक्षकार:इस मामले में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, मां पत्नी और बेटे सहित अन्य लोगों को पक्षकार बनाया है. शासन की आपत्तियां खारिज करते हुए न्यायालय ने कमला राजे चैरिटेबल ट्रस्ट का आवेदन स्वीकार कर लिया है. न्यायालय ने सिंधिया और परिजनों सहित अन्य लोगों को पक्षकार बनाने का आदेश दिया है. बता दें न्यायालय में आवेदन देकर इन्हें पक्षकार बनाने की मांग की गई थी. शासन ने इसका विरोध किया, लेकिन न्यायालय ने दलीलें नहीं मानी. न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि वाद पत्र पर सभी ट्रस्ट हो या अधिकृत प्रबंध न्यासी के हस्ताक्षर कराकर सत्यापन करना होगा. संभावना है कि सिंधिया परिवार किसी अन्य व्यक्ति को अपनी ओर से अधिकृत कर दे और वह न्यायालय में आकर कागजी कार्रवाई पूरी करें.

उठ रहे कई सवाल: अब इस मामले को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार इसे सरकारी जमीन बता रही है और सिंधिया ट्रस्ट अपनी जमीन बता रहा है. इस पूरे मामले में एक सवाल यह उठता है कि अगर यह जमीन सिंधिया ट्रस्ट की है तो फिर इस जमीन पर सरकार ने पुल क्यों बनाया और सिंधिया परिवार के मुखिया रहे माधवराव सिंधिया ने मंत्री रहते इस पुल का उद्घाटन क्यों किया. मामले में लगातार अब राजनीति शुरू हो गई है. बीजेपी के सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का कहना है कि यह कहें तो गलत नहीं होगा कि पूरा ग्वालियर ही उनका था. यह उनका व्यक्तिगत मामला है. उन्हें सोचना चाहिए कि वह अंचल के बड़े जनप्रतिनिधि हैं और जनता में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. इस पर उनको विचार करना चाहिए. वहीं इस मसले पर कांग्रेस लगातार पलटवार कर रही है.

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जनसेवक नहीं बल्कि धनसेवक हैं सिंधिया:कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष आरपी सिंह का कहना है कि अपने आपको जनसेवक बताने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया असल में धन सेवक हैं. जो जमीन और जनता को लूटने का काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि जिस पुल को उनके पिता और कांग्रेस के बड़े नेता माधवराव सिंधिया ने ही बनवाया, उसका उद्घाटन किया. अब उन्हीं के बेटे उसका हर्जाना मांग रहे हैं. यह बात सबको आश्चर्यचकित करती है. जिनके पिता ने इस ग्वालियर को सबसे बड़ी सौगात दी थी और वह इस ग्वालियर को अपना परिवार मानते थे, लेकिन उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी जमीने बताकर हर्जाना मांग रहे हैं.

मामले में वकील का बयान

कोर्ट ने कहा बाउंड्री के बाहर सिंधिया की कोई जमीन नहीं: इस मामले को लेकर हाई कोर्ट के वकील अवधेश सिंह तोमर ने बताया है कि एजी ऑफिस का पुल बहुत पुराना बना हुआ है. सर्वे नंबर 10, 71, 72, 73 जिस पर पीडब्ल्यूडी का सरकारी सर्वे नंबर है, लेकिन जब साल 2020 में कांग्रेस की सरकार आई तो ट्रस्ट को लगा कि यह जमीन हमारी है. जबकि 2004 में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश में यह कहा था कि उनकी (कमला राजा चैरिटेबल ट्रस्ट ) जमीन बाउंड्री के अंदर है, बाहर कुछ भी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी ओवर ब्रिज पुल की जमीन को लेने के लिए ट्रस्ट ने या मामला जिला न्यायालय में लगाया और लगातार प्रयास कर रहे हैं कि उस जमीन का मुआवजा हमें मिल जाए. हाई कोर्ट के वकील अवधेश सिंह तोमर ने बताया है कि यह मामला इसलिए लगाया है कि अगर इस जगह का मुआवजा उन्हें मिलता है तो बाकी सर्वे नंबर है, जो यह दावा कर रहे हैं कि वह हमारे हैं, उन पर भी दावा कर सकें. हाईकोर्ट के वकील अवधेश सिंह तोमर ने बताया इस दावे को लगाने के पीछे प्रशासनिक अधिकारियों पर भी काफी दबाव रहा है. उन्होंने बताया है कि इस मामले को लेकर मैंने भी अपना पक्ष न्यायालय के सामने रखा है, लेकिन अभी तक ट्रस्ट के द्वारा यह प्रमाण आज तक नहीं दे पाये है, यह संपत्ति उनकी है.

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