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MP Police Negligence: पूरी नहीं हुई बेटे की तलाश, खोखले सिस्टम से पिता हताश, अब मांग रहा मृत्यु प्रमाण पत्र - पिता की पूरी नहीं हुई बेटे की तलाश

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पुलिस की उदासीनता और खोखले सिस्टम से परेशान पिता अब अपने लापता बेटे का मृत्यु प्रमाण पत्र मांग रहा है. पिछले 13 साल से पुलिस नहीं लगा पाई है गुमशुदा बेटे का कोई सुराग.

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पूरी नहीं हुई बेटे की तलाश, खोखले सिस्टम से पिता हताश

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Published : Feb 16, 2023, 7:58 PM IST

पूरी नहीं हुई बेटे की तलाश, खोखले सिस्टम से पिता हताश

भोपाल। कई दरबार में मत्था टेकने के बाद औलाद नसीब होती है. जब इसी औलाद के जीते जी किसी बाप को डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए मजबूर होना पड़े तो यह सिस्टम का फेल्योर नहीं तो और क्या है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है राजधानी भोपाल के मिसरोद थाने से. यहां 13 साल पहले लापता हुए एक युवक के पिता ने थक हारकर अब बेटे के मिलने की आस छोड़ दी है और डेथ सर्टिफिकेट के लिए कोर्ट में आवेदन कर दिया है.

हाईकोर्ट के आदेश पर भी गंभीर नहीं हुई पुलिसः उत्तर प्रदेश झांसी के रहने वाले डॉ. बीपी सूत्रकार कृषि विभाग में बतौर सहायक संचालक कार्यरत हैं. उनकी पोस्टिंग अभी छतरपुर में है.सिस्टम से परेशान हाल एक आदमी की तरह से छतरपुर से भोपाल तो भोपाल से छतरपुर तक चक्कर लगाने के लिए मजबूर है. सूत्रकार बताते हैं कि उनके दो बेटे थे. बड़ा बेटा कृष्णकांत 2010 में भोपाल के भाभा कॉलेज ऑफ डेंटल साइंस जाटखेड़ी से बीडीएस की पढ़ाई कर रहा था. वह सेकेंड ईयर का छात्र था. 21 फरवरी 2010 को अचानक कहीं लापता हो गया. पुलिस ने उसकी गुमशुदगी दर्ज कर फाइल एक तरफ डाल दी. इस बात को 4 दिन बाद पूरे 13 साल हो जाएंगे. इन 13 साल में बेटे का कोई सुराग पुलिस नहीं तलाश पाई. आखिरकार 11 साल तक पुलिस अफसरों के चक्कर लगाकर तंग आ गए और सूत्रकार ने हाईकोर्ट की शरण ली. उन्होंने याचिका लगाई कि पुलिस उनके बेटे को ठीक ढंग से तलाश नहीं कर रही है. हाईकोर्ट ने 26 अक्टूबर 2021 को आदेश दिए कि पुलिस गंभीरता से इस मामले की जांच करें, लेकिन पुलिस ने गंभीरता नहीं दिखाई. खोखले सिस्टम से थक हारकर वह अब अपने लापता बेटे का डेथ सर्टिफिकेट मांग रहे हैं.

पूरी नहीं हुई बेटे की तलाश

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इसलिए नहीं मिल रहा है डेथ सर्टिफिकेटः जब सूत्रकार नगर पालिका दफ्तर में डेथ सर्टिफिकेट के लिए गए तो उन्होंने कहा कि पुलिस ने अब तक इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट नहीं लगाई है. ऐसे में सीधे डेथ सर्टिफिकेट जारी करना संभव नहीं है. सूत्रकार भोपाल आए और पुलिसकर्मियों से मुलाकात की तो जवाब मिला कि अभी बेटे को ढूंढ रहे हैं. तब वे छतरपुर गए और वहां उन्होंने सिविल कोर्ट में डेथ सर्टिफिकेट के लिए अपील कर दी. दरअसल उन्हें बैंक में बेटे के नाम से जमा राशि निकालनी है, क्योंकि बेटे के जाने के बाद उनकी पत्नी लगातार बीमार है और अब तक इलाज पर लाखों रुपया खर्च हो चुका है. बैंक ने ही सलाह दी कि कोर्ट में अपील करें.

पुलिस बोली आकर मिले हमसेः इस मामले में भोपाल के मिसरोद थाना प्रभारी रास बिहारी शर्मा से बात की तो बोले कि हमसे कभी भी सूत्रकार आकर नहीं मिले और न ही इस केस के बारे में कुछ याद है. यदि वे व्यक्तिगत आकर मिलेंगे तो हम भी उनकी मदद करेंगे.

खोखले सिस्टम से पिता हताश

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ऐसे मामले सिविल डेथ सर्टिफिकेट के दायरे में आते हैंः नियमानुसार जब कोई भी लापता व्यक्ति 7 साल तक नहीं मिलता है, तो उसे मृत मानकर फाइल बंद कर दी जाती है. लीगल मामलों के जानकार एडवाकेट आनंद शर्मा बताते हैं कि ऐसे मामले में धारा 108 के तहत सिविल डेथ सर्टिफिकेट बनाया जाता है. इसके लिए पीड़ित व्यक्ति को नगर पालिका या नगर निगम या फिर संबंधित संस्था में जाकर FIR की कॉपी, क्लोजर रिपोर्ट, गुमशुदा के लिए जारी किए गए विज्ञापन की कॉपी आदि लगाकर आवेदन करना होता है. हालांकि इसके बाद भी कम ही बार होता है, जब सीधे डेथ सर्टिफिकेट बन जाए. तब ऐसे मामले में सिविल न्यायालय के भीतर सिविल डेथ सर्टिफिकेट बनवाने का आवेदन करना होता है. तब जाकर मृत व्यक्ति का डेथ सर्टिफिकेट बनता है और उसकी चल अचल संपत्ति अपने वारिसों को मिल पाता है.

उत्तराखंड सरकार ने की थी विशेष व्यवस्थाः चमोली में आई आपदा के दौरान करीब 134 लोग लापता हो गए थे. तब उत्तराखंड सरकार ने नियमों में शिथिलता देते हुए कई लोगों के डेथ सर्टिफिकेट जारी करने के निर्देश दिए थे. इसके लिए परिजनों से शपथ पत्र लिया गया और संबंधित रिश्तेदारों के बयान लिए गए थे. इसके बाद विज्ञापन जारी करके 30 दिन के भीतर दावे आपत्तियां बुलाई गई और जब कोई दावा नहीं हुआ तो डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिए गए.

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