सागर।आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दलित वोट हासिल करने के लिए बीजेपी ने 100 करोड़ के रविदास मंदिर का दांव खेला है. आगामी 12 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंदिर का भूमिपूजन करने सागर पहुंच रहे हैं, लेकिन भूमिपूजन के पहले ही रविदास मंदिर को लेकर कई तरह के विवाद खडे़ हो गए हैं. इन विवादों की तह में जाने के लिए समझना होगा कि संत रविदास कौन थे और उनका सागर से क्या नाता है और सागर में उनका मंदिर क्यों बनाया जा रहा है. जहां मंदिर बन रहा है, उस स्थान को लेकर संत रविदास के अनुयायी नाराज क्यों हैं और क्यों विरोध कर रहे हैं. संत रविदास सागर में जिस जगह आए थे, वहां भी डेरा है और देश भर के श्रृद्धालु वहां आते हैं, लेकिन उस स्थान की उपेक्षा क्यों की गयी. इन सब सवालों की तह में जाने ईटीवी भारत की टीम सागर मार्ग पर स्थित कर्रापुर पहुंची. जहां संत रविदास का आश्रम है और देश भर से उनके अनुयायी यहां आते हैं.
कौन है संत रविदास:संत रविदास 15-16वीं शताब्दी के महान दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. कहा जाता है कि उत्तर भारत में संत रविदास ने भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया था. संत रविदास अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को धार्मिक और सामाजिक संदेश देते थे. संत रविदास को रैदास, रोहिदास और रूहिदास भी कहा जाता है. संत रविदास का जन्म वाराणसी के पास सीर गोवर्धन गांव में 1376-77 के आस पास हुआ था. संत रविदास के पिता जूते बनाने और सुधारने का काम करते थे. संत रविदास जैसे-जैसे बडे़ हुए तो भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती गई. संत रविदास ने समाज में छुआछूत, भेदभाव और असमानता को दूर करने की ठानी और समाज के लोगों को कविताओं और दोहों के माध्यम से संदेश दिए. संत रविदास के अनुयायी मानते हैं कि रविदास ने 120 साल बाद वाराणसी में अंतिम सांस ली थी.
संत रविदास का सागर से है क्या नाता: वैसे तो संत रविदास के अनुयायी देश भर में हैं. पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा कई प्रांतों में उनके अनुयायी हैं. जहां तक मध्यप्रदेश के सागर से संत रविदास का क्या संबंध है, तो उनके अनुयायी बताते हैं कि "मीराबाई संत रविदास की शिष्या थीं. संत रविदास एक बार जब बनारस से चित्तौड़गढ़ के लिए निकले तो सागर से करीब 15 किलोमीटर पहले केहरपुर गांव में रूके, जो अब कर्रापुर के नाम से जाना जाता है. जैसे ही आसपास खबर फैली कि संत रविदास कर्रापुर में रूके हैं, तो लोगों की भीड़ लग गयी और उनके दर्शनों के लिए लोग उमड़ पडे़. तब राजा चंद्रहास का राज कर्रापुर में हुआ करता था. जैसे ही उनको संत रविदास के पहुंचने की जानकारी मिली, तो वो उनके दर्शनों के लिए पहुंचे और उन्होंने संत रविदास जिस जगह ठहरे थे, वहां पास में एक तालाब के लिए जमीन दान की. आज वहीं संत रविदास का आश्रम है और सामने तालाब है. करीब 35 साल पहले संत रविदास के अनुयायी स्वामी काशीदास ने यहां आश्रम का निर्माण किया. तब से यहां पर देश भर से संत रविदास के अनुयायी पहुंचते हैं.